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भगवति चरण कमल युग रे सेवल सुखदाई।
मोर मानस भेल मधुकर रे लुबुधल मन लाइ।।
विधि हरिहर नित सेवल रे श्रुति सम्मति जाने।
चारि पदारथ लहि लहि रे ह्रदय धरत ध्याने।।
जे जन समुरिय निश दिन रे तसु पूरन कामा।
विपति दूरि सुख उपगत रे पालति शिव - वामा।।
नाम जपत मुद मंगल रे नाशत अज्ञाने।
आदिनाथ रहु दायिनि रे दै दै वरदाने।।
( तत्रैव )
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