रविवार, 1 जनवरी 2017

649 . तुअ बिनु आज भवन भेल रे , घन विपिन समान।


                                   ६४९
                              श्रीसीता 
तुअ बिनु आज भवन भेल रे , घन विपिन समान। 
जनु ऋषि सिधिक गरुअ भेल रे , मन होइछ भान।।
परमेश्वरि महिमा तुअ रे , शिव विधि नहि जान। 
मोर अपराध छमब सब रे , नहि याचब आन।
जगत जननि का जग कह रे , जन जानकि नाम। 
नैहर नेह नियत नित रे , रह मिथिला धाम।।
शुभमयि शुभ शुभ सब दिन रे , थिर पति अनुराग। 
तुअ सेवि पुरल मनोरथ रे , हम सुखित सुभाग।।
                                            ( रामायण )

कोई टिप्पणी नहीं: