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श्रीसीता
तुअ बिनु आज भवन भेल रे , घन विपिन समान।
जनु ऋषि सिधिक गरुअ भेल रे , मन होइछ भान।।
परमेश्वरि महिमा तुअ रे , शिव विधि नहि जान।
मोर अपराध छमब सब रे , नहि याचब आन।।
जगत जननि का जग कह रे , जन जानकि नाम।
नैहर नेह नियत नित रे , रह मिथिला धाम।।
शुभमयि शुभ शुभ सब दिन रे , थिर पति अनुराग।
तुअ सेवि पुरल मनोरथ रे , हम सुखित सुभाग।।
( रामायण )
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