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हम अति विकल विषय रस मातल भगवति तोहर भरोसे।
अशरन शरण हरण दुख दारिद तुअ पद पङ्कज कोशे।।
विधि हरि शिव शनकादिक सुरमुनि पाबि मनोरथ दाने।तुअ गुण यश वरणन कर अनुछन वेद पुराण बखाने।।
जे तुअ साधक पुरल तनिक मन अवसर आएल मोरा।
अरु अभिलाख सतत वरदाइनि करिय विनय कछु तोरा।।
आदिनाथ पद कृपा युक्त भय निशि दिन करू कल्याणे।
सुत सम्पत्ति सुख मुद मङ्गल दै चारि पदारथ दाने।।
( तत्रैव )
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