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दुर्गा
जय जय दुर्गे अनुपम रुपे , नाम उदित जगदम्बे।
तुअ पदपंकज सेवि चरण मन , दोसर नहीं अवलम्बे।।
तुअ गुणवाद करय के पाबय , लिखि नहि सकथि महेशे।
निर्गुण भय सगुण करू धारण , बिहरथि भगन अकाशे।।
' भैअनि देवी ' गहल चरण युग , हरु न हमर दुख भारे।।
भैअनि देवी ( तत्रैव )
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