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सुरसरि
जन के पीर हरे , सुरसरि हे।
देशदेश केर यात्री आएल , दर्दर - क्षेत्र भरे।।
सरयू आबि मिललि संगम भय , त्रिकुटी स्थान घरे।
ब्रह्म कमंडलु जटा शंकरी , विष्णुक चरण परे।
सेवा कय भागीरथ लायल , पतित अनेक तरे।
धर्म्मक देनी पापक छेनी , सन्तक चरण परे।।
सकल पतित केँ तारल गंगा ' दास ' किएक ने तरे।।
दास ( तत्रैव )
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