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गंगा तुअ महिमा कहल नहि जाय हे। शंभु माथा राखल चढ़ाय हे।
पतित उधार नहि दोसर उपाय हे। सुयश पताका तुअ जग फहराया हे।
वेद ओ पुरान गण देलनि सुनाय हे। तुअ तट सेवितहिं निरमल काय हे।।
चन्द्र कवि कर जोड़ि कहथि सुनाय हे। अन्त नै बिसरू मोरा सुरसरि माय हे ।।
( चन्द्र रचनावली )
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