गुरुवार, 5 जनवरी 2017

654 .जय गंगाजी जगजननी , जय सन्तन सुखदाई।


                                     ६५४
                                    गंगा
जय गंगाजी जगजननी , जय सन्तन सुखदाई। 
चरण कमल अनुराग भागसौ , लय ब्रह्मा उर लाई।।
चारि पदारथ अछि जगजीवन , वेद विमल जस गाई। 
भक्त भगीरथ उनके कारन , प्रगटि अवनि मँह आई।।
तेज प्रताप कहाँ धरि बरनब , शंकर सीस चढ़ाई। 
हेम - शिखर पर ललित मनोहर उर जयमाल सोहाई।।
ताकर नाम लेत जम किंकर करुणा करू फिरि जाई। 
राम नाम गंगा कलि केवल , दास और ने उपाई।।
' कान्हरदास ' आस रघुवर के हरिख निरिख गुनगाई।।
 कान्हरदास- हिन्दी साहित्य और बिहार , भाग - २ , राष्ट्रभाषा परिषद्  

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