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नहि जग बाहर हम जगतारिणि तोहे जगदम्ब भवानि। परपुत जानि मोहि ज्यों त्यागब जगजननी पद हानि।।
ज्यौं सुत करत अनेक उपद्रव जननि छमति सब दोषे।
रोख बिसारि माय प्रतिपालति पुत्र करत अमरोषे।।
तुअ प्रेरित हम करिय अहोनिशि ते नहि मोर अपराधे।।
तुअ माया तहँ मेटि पाप सभ आनक किछु नहि साधे।।
तोहर भरोसे धैल हम सभ खन तुअ बल मन अवधारि।
तुअ प्रताप हम शत्रु मारि जग सुख भोगब शिवनारि।।
पूरित करिय अभिलाख निरन्तर दै पद भक्ति उपाम।
आदिनाथ पै कृपा करिय नित दाहिनि रहु सब ठाम।।
आदिनाथ ( मैथिली भक्त प्रकाश )
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