रविवार, 30 अप्रैल 2017

749 . भज मन जगजननी भव भाविनी।


                                    ७४९
भज मन जगजननी भव भाविनी। 
यो किछु कोयि करजन मानसा भरण पुरण करतारिणि। शिर पर चन्द्र मुकुट विराजे मुख वेसरि सोहे। 
सोहे तिलक पटम्बर कुण्डल देखि महेशर मोहे।।
                                                   ( तत्रैव ) 

शनिवार, 29 अप्रैल 2017

748 . कृपा करह जगत जननी माता। तोहे भवानी सब लोक का धाता।।


                                    748 
कृपा करह जगत जननी माता। तोहे भवानी सब लोक का धाता।।
खीन सेवक हमे देखि कर करुना। कि कहब माता मोए तोहर गुना।।
जगतप्रकाश नृपति कर विनती। जनम होउ तोर पदे मती।।

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

747 . जत अपराध मोर क्षमह भवानि। होएतहु बेर बेर जानि अजानि।।


                                       ७४७
जत अपराध मोर क्षमह भवानि। होएतहु बेर बेर जानि अजानि।।  
शंकट बड़ भेल दुर कर दुख। सुदिठिहि देखि कए करू मोहि सुख।।
निअ शिशु जनु भिषि मगाबह मायि। सब दुख मोर देवि कहि नहि जाइ।।
जगतप्रकाश कह तोहे आधार। करुणा कर मोर कर उपकार।।

गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

746 . अधिर कलेवर जानु हे कमलक पात जल तूल हे।।


                                       ७४६ 
अधिर कलेवर जानु हे कमलक पात जल तूल हे।
भवन कनक जन रजत आदि जात धिर नहि रह सब जने। 
सुत मित सब धन सुख दुख शरीर अधिर जानल सब मने। 
सिरजन शरीर ई ई सबका मन नृप अवयव दासे। 
मनहि पाबय पुने अधरम अपजस मन बसे पाव एत पासे।।
जगत प्रकाश आस कएल तोहर चान्दशेखर सिंह भाय। 
जगतजननि पथ हे थिर राखह दुहू जनक दुहू काय।।
                                   ( मैथिली शैव साहित्य )

बुधवार, 26 अप्रैल 2017

745 . अनेक अपराध होए हमरा , क्षमह जगत मात।


                                       ७४५
अनेक अपराध होए हमरा , क्षमह जगत मात। 
किछु सेवा कएल मोए , नित नित करह सुदिठि पात।।
करुणा ते सुनि हमर विनिति पुरह तोहे भवानी। 
चारि पदारथ मागल मोए तोहे से देह सेवक जानि।।
अउर कि विनति करब हम तोह ई सब तोहहि जान। 
पद युग धरि कह प्रकाश नृप सरण नहि मोर आन। 

मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

744 . नहि धन नहि जन नहि आन देवा। मोन कएल जननी तोहर एक सेवा।।


                                      ७४४ 
नहि धन नहि जन नहि आन देवा। मोन कएल जननी तोहर एक सेवा।।
तोर करुणा ते मोर सब परिपुर। निय पद सनो हम जनु कर दूर।।
नित नित मागल मय ई तुव पासे। पुरह भवानी हमर मन आसे।।
जगतप्रकाश मल्ल भूपति भासे। जे हमरा अरि कर तसु नासे।।
                                                                   ( तत्रैव )

सोमवार, 24 अप्रैल 2017

743 . नहि आन गति हमरा माता।।


                                     ७४३ 
नहि आन गति हमरा माता।।
मोने मन वचन कएल तुअ सेवा। करुणा कर कुल देवा।।
मोर अपराध क्षमह तोहे माता।  मोर रिपु का कर घाता।।
एहे संसार तोहे देवि सिरिजर। तोहहि देह अभयवर।।
करे जोरि विनति कर प्रकाश। पुराबधु मोर आश।
                    जगतप्रकाशमल्ल ( प्रभावती हरण )

शनिवार, 22 अप्रैल 2017

742 . सकल असार सार पद पंकज तोहर मनहि विचारल हे।


                                      ७४२
सकल असार सार पद पंकज तोहर मनहि विचारल हे। 
जे तोहे करब से करह भवानी हट कए ह्रदय लगाओल हे।। 
गुण , दोष मोहि एकओ नहि जानह दारुक पुतरि उदासिन हे। 
जे किच्छु करावह करओ से माता हमें नहि अपन स्वआधिन हे।
तोह छाड़ि आन काहु नहि समुझनो दीन न भाषणों वाणी हे।
भाव जञ्जाल जाल मोर जालह शरणागत मोहि जानी हे।  
तोहे ठकुरायिनि हमें तुअ सेवक ई अपने अवधारी हे। 
कत अपराध पड़त अगेआनाहि से सबे हलह समारी हे।। 
नृप जगजोतिमल एहन बुझाबए चण्डी चरन चित राखी हे। 
सब सिधि आबए भगवति झुमरि सुमरि सुमरि मन साखी हे।। 
                                                               ( मुदित कुबलयाश्व नाटक )

शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

741 . दिग देल अरुण किरण परगास। आरति लाओब परशिव पास।।


                                      ७४१
दिग देल अरुण किरण परगास। आरति लाओब परशिव पास।।
रे रे भवानी शरण तोहारि। जननि कृपा करू भवभय तारि।।
दिन दश लागि करब बहु बात। ममतामोह भरम मदमात।।
परशिव वरिय सुधारस सार। अलि पद सरसिज भेदए पार।।
ऊग कलारवि दिगरस वेद। चाँद सुरुज खेल , पवनक भेद।।
विहि आसने गुण महानिसि सेव। गगनविन्दु रस शशिकर देव।।
नृप जगज्योति एहो रस गावे।  गुरु परसाद परम लए पावे।।
                                               ( गीतपञ्चारिका )  

गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

740 . नयनक दोष कतय नहि होए। जननि कृपावसे दूकर धोए।।


                                      ७४० 
नयनक दोष कतय नहि होए। जननि कृपावसे दूकर धोए।।
करजोड़ि पए पड़ि विनमञो तोहि। एहि दुखभार संतारह मोहि।।
कतए कतए नहि कएलह उधार। पालि न मारिअ करह विचार।।
भयभञ्जनि तोहे माए भवानि। आबे किए बिसरलि अपनुकि वानि।।
नृप जगजोति कह न कर उदास। जतहि ततहि जग तोहरे आस।
                                                                                 ( तत्रैव  )

बुधवार, 19 अप्रैल 2017

739 . दालिम दशन पाती अधर विद्रुम कांती।


                                     ७३९
दालिम दशन पाती अधर विद्रुम कांती। 
सुखक सदन प्रसन्न वदन पुनित चाँदक भाँती। 
                                      देवि हे तों हहि जगतमाता। 
सकल संयत मूनि अभिमत , चारि पदारथ दाता।।
नयन भौंह विलासे मदनवाण प्रगासे। 
विकल कमलयुगल ऊपर भ्रमन पाँति विकासे।।
दानव दलन शीले विहित समर लीले।  
जगततारिणि दुरित दारिनि विवुध पालन धीरे।।
नृप जगजोति गाबे तुअ पद मन लाबे। 
जेहन जलद चातक चाहए आन किच्छु नहि भावे।।
                                    ( मुदित कुबलयाश्व नाटक )  

मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

738 . मातु भवानी शरण तोहारो जाओ बलिहारी।।


                                      ७३८
मातु भवानी शरण तोहारो जाओ बलिहारी।।
मन क्रम वचन अओर नहि भावत। 
एहि संसार काहे अटकावत।।
अओर कि अओर सनो मन मेरो तोह सनो। 
मोरब प्रीति जैसे शसि कुमुदिनि सनो।।
नृप जगजोति कह आस न कायक। 
जनम जनम तोहरे गुण गायक।।
चरण कमल तुअ शरण भए मोहि। 
अपने रोपि का मारह पालह।।
                                      ( मुदित कुबलयाश्व नाटक ) 

सोमवार, 17 अप्रैल 2017

737 . भवभयभञ्जनि असुर विनासिनि।जगजनपविनि त्रिभुवनकारिनि।


                                     ७३७
भवभयभञ्जनि असुर विनासिनि।जगजनपविनि त्रिभुवनकारिनि।
मनसुखदायिनि रिपुगणमारिनि। जयजगदायिनि जय बलकारिणि।।
सुरगणनन्दिनि दुरितनिकन्दिनि। मृगपतिचारिणि समरविदारिणि।।
नृप जगजोति मति चण्डीचरनरति। राग मल्लार जाति ताल रूपक गति।।
                                                              ( मुदित कुवलयाश्व नाटक ) 

रविवार, 16 अप्रैल 2017

736 . मधुकैटभ महिषासुर मारल इन्द्र आदि देव तव जो करे।।


                                     ७३६
मधुकैटभ महिषासुर मारल इन्द्र आदि देव तव जो करे।।
धूम्रलोचन जम धरहि पठाओल चण्डमुण्ड रक्तबीज संहरे।।
समरे भवानि हाथे बैरि जिब गेल सुरमुनि मने हरख भेला। 
सवे दिगपाल अपन पद थापल सबक विषाद खनहि दुर गेला।।
ताहि उपर शुम्भ निशुम्भ विदारल चौदिस जय जय किन्नर गाव। 
जहा जहा संकट देवि उधरि लेह नृप जगजोतिमल भगतिहि लाव।।
                  जगज्ज्योतिर्मल्ल  ( कुञ्जविहारी नाटक )

शनिवार, 15 अप्रैल 2017

735 . सबके सुधि अहाँ लै छी अम्बा हमरा किए बिसैर छी ये।।


                                      ७३५ 
सबके सुधि अहाँ लै छी अम्बा हमरा किए बिसैर छी ये।
थिकहुँ पुत्र अहीं केर हमहुँ , ई तँ अहाँ जनै छी ये। 
रैन दिवस हम मिनती करै छी , दर्शन किए ने दै छी ये।
अम्बा अम्बा जय जगदम्बा , तारण तरण करै छी ये। 
हमरा बेर में आँखि मुनै छी , ई नहि उचित करै छी ये।

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

734 . जय भगवती वरदायिनी मा मंगले मंगल करू


                                      ७३४
जय भगवती वरदायिनी मा मंगले मंगल करू 
जय शिवप्रिये शंकर प्रिये मा मंगले मंगल करू। 
जय अम्बिके जगदम्बिके जय चण्डिके मंगल करू।।
अनन्त शक्तिशालिनी अमोघ शस्त्रधारिणी। 
निशुम्भ - शुम्भ मर्दिनी त्रिशुलचक्र पायनी ,
हे ईश्वरी , परमेश्वरी रामेश्वरी मंगल करू।।
करात मुख कपालिनी विशाल मुण्डमालिनी ,
असीम कष्ट हारिणी त्रिमूर्ति सृष्टि धारिणी ,
दुःखहारिणी सुखदायिनी हे पार्वती मंगल करू।।
प्राकृत तुहीं साकृत तुहीं दया तुहीं क्षमा तुहीं ,
प्रथा तुहीं छटा तुहीं शुभा तुहीं कला तुहीं ,
हे ललित शक्तिप्रदायिनी सिद्धेश्वरी मंगल करू।।
                                                    अज्ञात कविक  

गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

733 . जागू जागू जागू मैया जागू तजि ध्यान ये।


                                     ७३३
जागू  जागू जागू मैया जागू तजि ध्यान ये। 
अभागल चन्द्र आज पहुँचल दलान ये।
लाल वसन शोभे कञ्चन वदन ये। 
भाल बीच शोभे दूनू लाल नयन ये।
गला बीच फूलक माला खून सन लाल ये। 
नमरल कारी कारी गला शोभे हार ये।
तोरि - लोड़ि फूल अनबै रक्त चन्दन ये। 
साँझ - प्रात पूजन करबै मनुआँ मगन ये।
जगमातु की सुनु दीनक गान ये। 
हमरा ऊपर कने खोलू अहाँ ध्यान ये।
चन्द्र कहथि मैया कतए नुकायल छी। 
अहाँ दर्शन लेल हमहुँ बेहाल छी।
                                                      चन्द्रकान्त झा 

बुधवार, 12 अप्रैल 2017

732 . जयति भवानी हे कल्याणी , सकल ताप परिताप हरु


                                      ७३२
जयति भवानी हे कल्याणी , सकल ताप परिताप हरु
देबहुँके दुःख दूर कयल मा , अधमाधम हम , पाप हरु। 
जगत विदित अछि कथा अहाँक , घट घट वासिन हे मइया  
कखनहु काली कखनहु दुर्गा , रूप धारिनी हे मइया 
कामाख्या विंध्याचल दौड़ी , हमर मोह भवचाप हरु।।देबहुँके।।
जखन - जखन दुख बढ़लै , बनलौ , दैत्य विनासिनि हे मइया 
रणमे शुम्भ - निशुम्भ संहारल , महिषा मर्दिनी हे मइया 
मरुभूमि केर मृगा सनक मन , हमर दुःखक अभिशाप हरु।।देबहुँके।।
रंक निमिष भरिमे हो राजा , दौड़े आन्हर हे मइया 
बौका गाबय गीत , चढ़ै गिरवर पर नांगर हे मइया 
चरण ' चरणमणि ' विलखि पुकारी , हमर कलंकक छाप हरु।।देबहुँके।।
                                                             चंद्रमणि 

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

731 . हे माय अहाँ बिनु आश ककर


                                      ७३१ 
                     हे माय अहाँ बिनु आश ककर
जगदम्ब अहीं अवलम्ब हमर , हे माय अहाँ बिनु आश ककर ? 
जं माय अहाँ दुःख नहि सुनबइ , तँ जाय कहु ककरा कहबइ ?
करू माफ़ जननि अपराध हमर , हे माय अहाँ बिनु आश ककर ?
हम भरि जग सँ ठोकरायल  छी , माँ अहींक शरण में आयल छी , 
देखु हम पड़लहुँ बीच भँवर , हे माय अहाँ बिनु आश ककर ?
काली - लक्ष्मी - कल्याणी छी , तारा - अम्बे - ब्रह्माणी छी ,
अछि पुत्र ' प्रदीप ' बनल टूगर , हे माय अहाँ बिनु आश ककर ?
                                         प्रभुनारायण झा ' प्रदीप '

सोमवार, 10 अप्रैल 2017

730 जननी , तोहर चरण जौं पाबी।


                                      ७३०
जननी , तोहर चरण जौं पाबी। 
मलयानिल चर्चित चरणाम्बुज - छवि पर शीश चढावी।। 
जननी , तोहर चरण जौं पाबी।।
गंधराज कलिकोष - उर्मिला सँ नख - पंक्ति दहाबी ,
परमानन्द विभोर - मगन - मन उर - पंकज फलकाबी।।१।।
माटी पानि , गोधन तन - भूतल मोर मराल नचाबी ,
संयम शील बढ़य जन गण मन सौरभ पाबि गुलाबी।।२।।
वीणक गुंज - कुंज सागर - तट - निर्झर - कंठ - सलाबी। 
दिवाराति संध्या ऊषा पर नयन नीर छलकाबी।।३।।
गरुता अपन शारदा - धरणी पर हिलकोरि बहाबी। 
समटि स्वतंत्र - मंत्र गंधारणव रव आकण्ठ घुलाबी।।४।।
जननी , तोहर चरण जौं पाबी। 

रविवार, 9 अप्रैल 2017

729 . जननी ! लिअ आब सुधि मोर।


                                     ७२९
जननी ! लिअ आब सुधि मोर। 
पामर दीन विहीन ज्ञान हम जानि न महिमा तोर।।
यौवन मद मे मक्त छलहुँ मा ! वनिता भोग विभोर। 
हिंसा क्रोध प्रलोभक वस मे कैल स्मरण नहि तोर।।
यमक बराहिल जरा पकड़लक अपना तन नहि जोर। 
" काञ्चिनाथ " अगति मे करइत छी मा ! मा ! मा !सोर।।
                                  " काञ्चिनाथ " झा ' किरण ' 

शनिवार, 8 अप्रैल 2017

728 . जननि , वीणा - वादिनी ! व्याप्त छी संसार में अहँ ,


                                      ७२८
जननि , वीणा - वादिनी ! व्याप्त छी संसार में अहँ ,
विपुल - लोकाहलादिनी ! जननि , विणा - वादिनी !
मोह तिमिरक नाश हो। विगत रजनी भेल , मिहिरक , 
आब शारद - हास हो। विजय मंगल - शंख फूकू ,
अयि अशेष - निनादिनी ! जननि , वीणा - वादिनी !
युवक देशक क्षुब्ध यौवन ! अग्नि - बीज बजाउ , जय - जय 
करथु निर्भय क्रान्ति - वाहन। दिअह नव साहस , अखण्डित 
शक्ति प्राणोन्मादिनी।  जननि , वीणा - वादिनी !
                                                 आरसी प्रसाद सिंह  

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

727 . गोसाउनि---------------------- जय कमलासिनि। करुणागार।


                                       ७२७
                                   गोसाउनि
जय कमलासिनि। करुणागार। 
जननी ! महेश्वरि ! त्रिभुवनसारे !
रचित चतुर्भुज रुचिर बिहारे !
कुशलं वितरतु भगवति तारे !
अभिनव - भूषण - भय विनयस्ते !
मञ्जु - विपञ्ची - पुस्तक हस्ते !
श्यामनन्द विनोदिनि ! शस्ते !
शुभ्रतमे ! मम दवि नमस्ते !
                                                      श्यामानन्द झा   

बुधवार, 5 अप्रैल 2017

726 . दिअ दरशन करूशन करुणामयि , सुरमुनि ठाढ़ दुआर।


                                        ७२६
दिअ दरशन करूशन करुणामयि , सुरमुनि ठाढ़ दुआर। 
दास भवन होअ उत्सव , जगत जननि दरबार।।
मणिद्वीप सुवरनमय सुरतरु तर अभिराम। 
रतन वेदि मणिमण्डप तुअ शुभ शोभाधाम।।
कखन देखब भरि लोचन , मूरति परम ललाम। 
प्रणत चरन युग सेवब , करब अनेक प्रणाम।।
ब्रह्मा हरिहर जेहि भज , आनक ककर हिसाब। 
कवि गणनाथ विनत भल , विनत मोदमय गाव।।  

मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

725 . शंकरि त्रिभुवन जननि शुभंकरि , करुणामय पर शिवनारी।


                                     ७२५
शंकरि त्रिभुवन जननि शुभंकरि , करुणामय पर शिवनारी।
विश्वम्भर करुणाकर शङ्कर , उमाकान्त हर त्रिपुरारी।।
तुअ चरनन सेवारत अनुखन , काशीवास शरणसारी। 
सोमनाथ गणनाथ विनय कर , पुरहु आस कुमतिन टारी।। 

सोमवार, 3 अप्रैल 2017

724 . एहि कलिकाल उच्च द्विजवर कुल जनम तकर निरवाह अम्बे।


                                     ७२४
एहि कलिकाल उच्च द्विजवर कुल जनम तकर निरवाह अम्बे। 
कयलहुँ सकल दयामयि अपनहिं , उर भरि पसर उछाह अम्बे।। 
गुरुवर भय उपदेशि निमाहल , क्रमहि सकल आदेश - अम्बे। 
काशी में थिर बास देल मोहि , भव विधि छूटल कलेश - अम्बे। 
एलहुँ सदन अपन बुझि गृह मोर , राखब नियत निवास - अम्बे। 
तुअ पद प्रेमधार हिअ उमड़ल , नयन युगल परमास - अम्बे।।
स्नेह भरल थर - थर तन पुलकित , गदगद बोल अनूप - अम्बे।।
कएल नेहाल दास करुणामयि , जीवन्मुक्त सरूप - अम्बे।।
प्रणत मगन गणनाथ जोरि कर , माँग एक वरदान - अम्बे। 
तुअ पद रत थिर तारिणि कहइत , त्यागथि देह परान -अम्बे।।

रविवार, 2 अप्रैल 2017

723 . समदाउनि --------- अकथ तत्व तुअ तारिणि अम्बे महिमा अगम अपार।


                                      ७२३ 
                                  समदाउनि 
अकथ तत्व तुअ तारिणि अम्बे महिमा अगम अपार। 
पुरुष शरीर मनुज तनु धयलहु राम विदित संसार।।
अनुपम श्याम अङ्ग सम सुन्दर नयन युगल रतनार।।मर्यादा गुण सकल विहित विधि जग व्यवहार प्रचार।।
धन्य धन्य ' गणनाथ ' भेल लखि लखि छवि गुणसार।।
                                                              गणनाथ

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

722 . आब करू जनुदेरि हे मैया , मैथिल दिशि हेरु।।

                                     ७२२
आब करू जनुदेरि हे मैया , मैथिल दिशि हेरु।।
जनिके  सम्पत्ति आन दुहै अछि , अपने बन्हल मनु नेरु। 
मिथिला काम धेनु पय वञ्चित , छिन्न मलीन दुख भेरू।।
' लोचन ' मान बचाबथि कोन विधि , उद्दम चढथि सुमेरु। 
करुणामयि जननी अपने छी , नाम ककर हम टेरू।।
                                      ( मिथिला मोद )