११७ .
बंद अरमानों के आँसू
कागज़ के फूलों पर
बंद अरमानों के आँसू
कागज़ के फूलों पर
गिरकर बिखर गये
तलहथी पर राई
जमने से
आकाश कुसुम के फूल झड़ गये
बेवफाई के हर अगन के तपन को
गर्म रेतों के खेतों ने
तलहथी पर राई
जमने से
आकाश कुसुम के फूल झड़ गये
बेवफाई के हर अगन के तपन को
गर्म रेतों के खेतों ने
सोख लिए
जानकार भी अनजान बने रहे
चकोर की चाहत को चंदा के लिए जानकार भी अनजान बने रहे
भौंरा क्यों मचलता रहता है
फूलों के पास जाने के लिये !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १५-०१-१९८४
चित्र गूगल के सौजन्य से
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