127 .
खुदा न करे
इश्क
किसी को हो कभी
यह एक ऐसी आग है
जो तुझे जलाएगी
बुझ न पाएगी
पर
खुद कभी
हँसना गाना भूल कर
सदा रोने लग जायेगा
फिर हँसी तेरे ओठों पे
न आ पायेगी कभी
एक
आग लिए सीने में
घूमता रह जायेगा
फिर न कहना
' सवेरा ' ने
न रोका कभी
खो कर
मुस्कानों की महफ़िल
सदा के लिए
गम के समंदर में
डूब जायेगा
प्यार
पर ऐसी एक
वरदान है
जो न मिली
अब
तो फिर
न पाओगे कभी
जिन्दगी तो गुजर जायेगी
पर
जिन्दगी को
जान न पाओगे कभी
हँसी तो मिलेगी
पर
गम के मिठास को
न जान पाओगे कभी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 27-12-1983
चित्र गूगल के सौजन्य से
खुदा न करे
इश्क
किसी को हो कभी
यह एक ऐसी आग है
जो तुझे जलाएगी
बुझ न पाएगी
पर
खुद कभी
हँसना गाना भूल कर
सदा रोने लग जायेगा
फिर हँसी तेरे ओठों पे
न आ पायेगी कभी
एक
आग लिए सीने में
घूमता रह जायेगा
फिर न कहना
' सवेरा ' ने
न रोका कभी
खो कर
मुस्कानों की महफ़िल
सदा के लिए
गम के समंदर में
डूब जायेगा
प्यार
पर ऐसी एक
वरदान है
जो न मिली
अब
तो फिर
न पाओगे कभी
जिन्दगी तो गुजर जायेगी
पर
जिन्दगी को
जान न पाओगे कभी
हँसी तो मिलेगी
पर
गम के मिठास को
न जान पाओगे कभी !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 27-12-1983
चित्र गूगल के सौजन्य से
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