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जब दो मदमस्त नजरें मिलती हैं
तो प्याले की तरह
कुछ पीना चाहती हैं
और पिलाना चाहती हैं
दिल में दोनों के
कुछ उठता है
कुछ कहने को
कुछ सुनने को
पर ऐसा होता कम है
केवल रहस्य रहता है
इसीका मुझको गम है
कभी बात बढती नहीं है
ना जाने क्यों
उनके ओंठ हिलते नहीं हैं
घुट - घुट कर रह जाता हूँ
कुछ न उन से कह पाता हूँ
तसल्ली के मलहम से
जिगर का जख्म भर लेता हूँ
मैं ही नहीं बहुत सारे
भटक रहे हैं दर - दर
जो हैं इश्क के मारे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 27-03-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
जब दो मदमस्त नजरें मिलती हैं
तो प्याले की तरह
कुछ पीना चाहती हैं
और पिलाना चाहती हैं
दिल में दोनों के
कुछ उठता है
कुछ कहने को
कुछ सुनने को
पर ऐसा होता कम है
केवल रहस्य रहता है
इसीका मुझको गम है
कभी बात बढती नहीं है
ना जाने क्यों
उनके ओंठ हिलते नहीं हैं
घुट - घुट कर रह जाता हूँ
कुछ न उन से कह पाता हूँ
तसल्ली के मलहम से
जिगर का जख्म भर लेता हूँ
मैं ही नहीं बहुत सारे
भटक रहे हैं दर - दर
जो हैं इश्क के मारे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 27-03-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
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