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किसे है जरुरत मेरी ?
सिर्फ मेरे फर्ज को
किसे फिकर है मेरी ?
सिवाय मेरे गम को
मैं अभी न ही रहूँ
तो क्या फर्क पड़ता है
सिवाय मेरे मज़बूरी के
तुरंत सपना समझकर सभी
भूल जाएंगे तत्तक्षण मुझे
तन्हा जिन्दगी की सुबह
पहले ही दर्द की शाम बन गयी है
मैं जिऊँ या मरुँ
किसे फुर्सत है मेरे लिए
मेरा हर पल गम की जाम बन गयी है
उजालेपन में ही मेरी जिन्दगी
अमावश्या की शाम बन गयी है
बस एक चाहत है मेरी
या तो जिस्म ही मेरी जान छोड़ दे
या दुनियाँ से दूर हो जाऊं मैं
या दुनिया ही मुझसे दूर हो जाये
मेरे वफ़ा का फ़साना
हर गलियों में बेवफाई की है
इस घुटन भरी जिन्दगी से
मौत ही बेहतर है
अब तेरे इंतजारी से अच्छा
मेरा जनाजा निकलना ही बेहतर है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 18-05-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
किसे है जरुरत मेरी ?
सिर्फ मेरे फर्ज को
किसे फिकर है मेरी ?
सिवाय मेरे गम को
मैं अभी न ही रहूँ
तो क्या फर्क पड़ता है
सिवाय मेरे मज़बूरी के
तुरंत सपना समझकर सभी
भूल जाएंगे तत्तक्षण मुझे
तन्हा जिन्दगी की सुबह
पहले ही दर्द की शाम बन गयी है
मैं जिऊँ या मरुँ
किसे फुर्सत है मेरे लिए
मेरा हर पल गम की जाम बन गयी है
उजालेपन में ही मेरी जिन्दगी
अमावश्या की शाम बन गयी है
बस एक चाहत है मेरी
या तो जिस्म ही मेरी जान छोड़ दे
या दुनियाँ से दूर हो जाऊं मैं
या दुनिया ही मुझसे दूर हो जाये
मेरे वफ़ा का फ़साना
हर गलियों में बेवफाई की है
इस घुटन भरी जिन्दगी से
मौत ही बेहतर है
अब तेरे इंतजारी से अच्छा
मेरा जनाजा निकलना ही बेहतर है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 18-05-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
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