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अब क्या तेरा मेरा रिश्ता रख न पायी जब कोई नाता
रहने भी न दिया कोई वास्ता
भूल भी गयी जब इंसानियत का रिश्ता
छोड़ दी जब मानवता
तेरे मेरे बीच रह गया एक दर्द
जो है न बांटने के लिए
बस है वो सहने के लिए
कहूँगा बस इतना ही
रहने दे कम से कम
अपना ये दर्द का भी रिश्ता
मेरे रोने और गम का रिश्ता
मत करना कभी मजबूर मुझे
तोड़ देने को ये भी रिश्ता
अपना क्या रहा अब इस संसार से रिश्ता
गुमशुदा सा होकर कभी गुम हो जाऊँगा
बस रह जायेगा अपना ये दर्द का रिश्ता
जानकर ये मायूस न होना
मरते दम तक भी तेरा ये ' सवेरा '
तेरा ही बस इंतजार करेगा
समझ कर कभी तूँ दुःखी न होना
तेरी आत्मा पर सदा ही अधिकार रहेगा
समझकर भी कभी
ये समझने की
कोशिश न करना
पल -पल तुझे देखने को
तरसती हैं नजरें किसी की
बस आरजू है इतनी ही
तुझसे विनती है इतनी
जब मौत मेरे करीब हो
आकर खड़ी हो जाना
बस पल दो पल को मेरे करीब
इतना ही बस मैं कहूँगा
और बक - बक अपना बंद करूँगा
कितना हसीन होता है सपना
सच होता है बदसूरत कितना
तोड़कर राम से अपना रिश्ता
पता नहीं दिया है
कितने दिनों का बनवास
इस कलियुग की सीता ने !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०७-०१-१९८४
चित्र गूगल के सौजन्य से
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