सोमवार, 27 अगस्त 2012

133 . कैसा इश्क करने चला था बंदा

133 .

कैसा इश्क करने चला था बंदा 
देखो हो गया एक नया किस्सा 
चला था करने क्या 
पर देखो ये हुआ क्या 
भागोगे इस जंजाल से 
पर क्या है तेरी मजाल 
हो न सकेगा ऐसा तुम से 
रह जायेगा ये मलाल 
पहले जो सोंचा होता 
तो ऐसा कभी न होता 
गर जो हो गया 
तो फिर डर काहे का 
काहे का सोंचना 
कल क्या होगा माहे का 
पहले जो न सोंचा 
अब भी मत कुछ सोंच 
सोंच - सोंच के 
वृथा में क्यों देता है विष घोल 
ना जाने तूँ इस जीवन का 
क्या है भेद निराला 
जो होवत है सो होना था 
जो होना है सो होवेगा !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  26-03-1980 
चित्र गूगल के सौजन्य से  

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