१२२ .
किस पाप कि तुने सजा दी है
ये गम कि रात दी है
रोने को हर याद दी है
ना जाने ये किस पाप कि सजा दी है
ऐसे भी लोग जीते होंगे
सोंचा न था
खाली दिल से भी
जिस्म का बोझ ढ़ोते होंगे
सोंचा न था
बन के रह गया हूँ मैं
पैमाना खाली शराब का
सीप पानी से बाहर भी रह लेगा
ऐसा कैसे तूँ ने सोंचा
जिन्दगी में मेरे
इस तरह समा कर चली जाओगी
सोंचा न था
ये किस पाप कि तुने सजा दी है
ये गम कि रात दी है
रोने को हर याद दी है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १०-12-1983
चित्र गूगल के सौजन्य से
किस पाप कि तुने सजा दी है
ये गम कि रात दी है
रोने को हर याद दी है
ना जाने ये किस पाप कि सजा दी है
ऐसे भी लोग जीते होंगे
सोंचा न था
खाली दिल से भी
जिस्म का बोझ ढ़ोते होंगे
सोंचा न था
बन के रह गया हूँ मैं
पैमाना खाली शराब का
सीप पानी से बाहर भी रह लेगा
ऐसा कैसे तूँ ने सोंचा
जिन्दगी में मेरे
इस तरह समा कर चली जाओगी
सोंचा न था
ये किस पाप कि तुने सजा दी है
ये गम कि रात दी है
रोने को हर याद दी है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १०-12-1983
चित्र गूगल के सौजन्य से
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