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तह पे तह बातों की दबी
खुलती गाँठें गिरह की लड़ी
जाम की तलब में उखरती साँसें
कपड़ों की चोट से रोती पाटें
महलो हवेलियों से झाँकती
वासना की नंगी आँखें
नंगे जिस्म से खेलती
जवानी की बाहें
तराशे गढ़े से आती आवाज
उघरी हुई सिसकारी की
गोलाइयों पर से फिसलता हाथ
कड़ेपन को गीला कर रहा
डंके पर हो गई डंडे की चोट
भंग हो गई टूट गई निकली आवाज
ऊँचाईयाँ ऊँचे नीचे हुई
धौंकनी सी बन गई
ज्वार का समुद्र
झील सी शांत हो गई
यह कोई नहीं है बात नयी
रात पुरानी हो चुकी
बिकती है हर आस यहीं
बुढ़ापे का भी जवानी
जवानी ही जवानी रात बन जाती है
टूटता है हीरा
हर बार उसकी दाम लग जाती है
सिसकते रहते हैं अरमान
सच्चाई भी घुट कर रह जाती है
नजरों से कह लो जितना
पर ओठों तक ही बात रह जाती है
सच्चाईयों पे लटके रहते
वहाँ उसकी भी दाम लग जाती है
तेरे लायक रहने से पहले
बातें आम हो जाती है
खनका लो पहले अँगना
फिर सब कुछ हो जायेगा अपना
वर्ना यूँ ही तरसते रहो
देख - देख कर जलते रहो
सच्चाई को समझ लो सपना !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 06-06-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
तह पे तह बातों की दबी
खुलती गाँठें गिरह की लड़ी
जाम की तलब में उखरती साँसें
कपड़ों की चोट से रोती पाटें
महलो हवेलियों से झाँकती
वासना की नंगी आँखें
नंगे जिस्म से खेलती
जवानी की बाहें
तराशे गढ़े से आती आवाज
उघरी हुई सिसकारी की
गोलाइयों पर से फिसलता हाथ
कड़ेपन को गीला कर रहा
डंके पर हो गई डंडे की चोट
भंग हो गई टूट गई निकली आवाज
ऊँचाईयाँ ऊँचे नीचे हुई
धौंकनी सी बन गई
ज्वार का समुद्र
झील सी शांत हो गई
यह कोई नहीं है बात नयी
रात पुरानी हो चुकी
बिकती है हर आस यहीं
बुढ़ापे का भी जवानी
जवानी ही जवानी रात बन जाती है
टूटता है हीरा
हर बार उसकी दाम लग जाती है
सिसकते रहते हैं अरमान
सच्चाई भी घुट कर रह जाती है
नजरों से कह लो जितना
पर ओठों तक ही बात रह जाती है
सच्चाईयों पे लटके रहते
वहाँ उसकी भी दाम लग जाती है
तेरे लायक रहने से पहले
बातें आम हो जाती है
खनका लो पहले अँगना
फिर सब कुछ हो जायेगा अपना
वर्ना यूँ ही तरसते रहो
देख - देख कर जलते रहो
सच्चाई को समझ लो सपना !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 06-06-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
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