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दुर्गासप्तसती
जय जय दुर्ग - दलनि मन दुर्गे , दुरित निवारिणि माये।
महिष निशुम्भ शुम्भ सहारिणि , भव तारिण भव जाये।।माहे ०
अरि सँ मिलि अनुचर नृप सुरथक , जखन हरल धन - धामे।
एकसर भागि गहन बन अएला जत मुनि मेधस नामे।। माहे ०
सतत विकल मन घुमइत अनुखन नहि छल किछु विसरामे।
दुष्टों प्रजाजनक कल्याणक चिन्ता आठो यामे।। माहे ०
भेटल वैश्य समाधि ततहि जे , छल आकुलित उदासे।
पुत्र कपुत्र छीनि धन तकरा , देने छल वनवासे।। माहे ०
परिचय बुझि नृप सुरथ पुछल कहु किए अंह एहन हताशे।
कहि सभ कथा समाधि , कहल नृप ! सुनिअ हमर अभिलाषे।। माहे ०
यदपि कुपुत्र भेल , पुनि तकरे , अछि कुशलक जिज्ञासे।
जानि पड़य नहि हमर किएक मन लपेटल ममता पाशे।। माहे ०
सुनि नृप कहल सुनिअ हमरो मन , अछि एहने अज्ञाने।
लूटल राज सबहि जन मिलि पुनि तकरे कुशलक ध्याने।। माहे ०
बुझितहु मन नहि बुझए एकर अछि , कारण कओन विशेष।
चलु दुहुजन मिलि मेघस ऋषि सँ लेब एकर उपदेश।। माहे ०
मेधस ऋषिक समीप पहुँचि दुहु नत शिर कएल प्रणामे।
अति विनीत भए बितल कथा कहि , कहल अपन मनकामे।। माहे ०
मेधस कहल सुनिअ दुहु जन अहं हमर वचन दए काने।
थिक मायाक खेल सभटा ई , सुविदित शास्त्र प्रमाने।। माहे ०
थिकथि योगमाया ई विष्णुक हिनकर चरित अपारे।
करथि सृष्टि ; पालथि , ओ नाशथि , अपरूप अछि बेबहारे।। माहे ०
जकर दहिन , ई से नहि धन - सुख पबइत अछि निर्वाने।
जकर वाम , तकरहि दुख - जीवन , घोर नरक अबसाने।। माहे ०
मधुकैटभ हनि विधिक कएल जे त्राण प्राण भगवाने।
से हिनकहि अतुलित बल - महिमें , कहइछ सकल पुराने।। माहे ०
जखन महिष सन प्रबल असुर सँ हारल देव - समाजे।
तखन शक्ति ई तकरहु मारल राखल इन्द्रक लाजे।। माहे ०
दुष्ट निशुम्भ - शुम्भ पुनि देवक , छिनल जखन अधिकारे।
नाना रूप धएल देवी ई , कएल असुर संहारे।। माहे ०
धूम्रनयन ओ चंड - मुंड हनि , रक्तक लेलनि पराने।
भेल अकंटक राज सुरेशक , कएल देव यश गाने।। माहे ०
एहि विधि जखन दनुज - बाधा सँ हो पीड़िन संसारे।
तखन - तखन दुष्टक दलनक हित , लेथि देवि अवतारे।। माहे ०
तेँ अम्बाक ध्यान कए दुहुजन , करू पूजन सविधाने।
भेटत राज अतल धन पाएब , पाएब सुविमल ज्ञाने।। माहे ०
सुनि दुहुजन देवीक चरणमे , कएल अपन मन लीने।
कए संयम पूजल निशिवासर , निद्राहार विहीने।। माहे ०
तीन वर्ष पर देवि प्रकट भए पुरल दुहुक मन - कामे।
पलटल सुरथक राज , समाधिक , भेल ज्ञान अभिरामे।। माहे ०
सएह अहाँ दुर्गे मिथिलेशक , संकट करिअ विनाशे।
ईशनाथ सुतकेँ नहि बिसरब , अछि मनमे विश्वासे।। माहे ०
ईशनाथ झा