शुक्रवार, 31 मार्च 2017

721 . ७२१ चण्डि ! तोहर मिथिला देश।।


                                       ७२१
चण्डि ! तोहर मिथिला देश।।
जकर सुपच्छिम भाग वैशाली , धारि सुन्दर वेश। 
जाहि भूमिसँ जन्म लेलहुँ , भै सुता मिथिलेश।।
तकर महिमा हीन दिन - दिन भाव भाषा भेष। 
करथि लोचन विनय कर पुर , हरु क्लेश अशेष।।
                         त्रिलोचन झा ( मिथिला - मोदसँ )  

गुरुवार, 30 मार्च 2017

720 . श्यामा --------------- श्यामा चरण कमल हम पूजब जेहि पूजे त्रिपुरारी।। सखी।।


                                    ७२०
                                 श्यामा 
श्यामा चरण कमल हम पूजब जेहि पूजे त्रिपुरारी।। सखी।।
विधि हरिहर जेहि ध्यान धरथि नित स्तुतिरत सभ असुरारी।। 
रत्नमुकुट मणि नूपुर राजित मुण्डमाल छवि न्यारी। 
भक्तानुग्रह कारिणि शंकरि मन्द हसन सुखकारी।।
राजलक्ष्मी शरणागत जानिय भव सँ लेहु उबारी।। सखी।।
                                                         राजलक्ष्मी 

बुधवार, 29 मार्च 2017

719 . जननी तनय विनय सुनु थोर हमर ह्रदय करू वास।


                                      ७१९
जननी तनय विनय सुनु थोर हमर ह्रदय करू वास। 
जननी सतत जपत मनु तोर जबतक मम घट स्वास।।
जननी कालिक पराक्रम थोर जनन मरन भय त्रास। 
जननी निरभय पद तुअ कोर जतय तनय कर वास।।
जननी करती करमक डोर लक्ष्मीपति मन आस। 
जननी तुअ सुत अति मति भोर हेरहु निज पद दास।।
                                                     ऋद्धिनाथ झा  

सोमवार, 27 मार्च 2017

718 . जानकी--------------- मङ्गलमयि मैथिलि महारानी।। ध्रु।।


                                     ७१८
                                  जानकी 
मङ्गलमयि मैथिलि महारानी।। ध्रु।।
मङ्गलमयि मिथिला भूमिक जे , स्वासिनि सब गुणखानी।  
मैथिल जनकाँ मोद प्रदायिनि , महि तनया वर -दानी।।
आदि शक्ति जगतारिणि कारिणि , हरनि सकाल दुखखानी। 
श्री साकेतधाम स्वामिनि , श्रीरामचन्द्र पटरानी।।
विष्णु भवन लक्ष्मी रूपा जे , शंकर भवन भवानी। 
कृष्ण संग वृषभानु नन्दिनी , विधि घर मधि जे बानी।।
निज जनहित अवतरि महिमण्डल , करथि दुष्ट दलहानी।।
महिमा अमित पार के पाओत , वेद ने सकथि बखानी।।
करू उद्धार कृपामयि मिथिलाकेँ , निज नैहर जानी। 
राखु शरण ' यदुवर ' जनकाँ नित रक्षा करू निज पानी।।
                              ( मिथिला - गीतांजलि ) 

रविवार, 26 मार्च 2017

717 . दुर्गा------------------------ सिंह चढलि माता असुर - निकन्दिनि मोदिनि डोल गति - दापे।


                                      ७१७
                                      दुर्गा
सिंह चढलि माता असुर - निकन्दिनि मोदिनि डोल गति - दापे।  
आयुध उग्र शोभए आठो कर जाहि डरे अरि उर काँपे।।
दूर्वा - दल सन कान्ति मनोहर , सिरें शोभ चान कलापे। 
प्रणत मुकुन्द मांगए वर दुर्गे , हरिअ त्रिविध भव - तापे।। 
                                                         तन्त्रनाथ झा 

शनिवार, 25 मार्च 2017

716 . ब्रह्माणी-------------------- ब्रह्मशक्ति जे चढिय आइलि , हंसयुक्त विमान यो।


                                     ७१६
                                  ब्रह्माणी 
ब्रह्मशक्ति जे चढिय आइलि , हंसयुक्त विमान यो। 
कमल आसन देखु सुन्दर , शोभए कुण्डल कान यो।  
चारि मुख तह वेद बाँचथि , पीत वसन विराज यो। 
कुश कमण्डलु दण्ड लय कर , चललि दैत्य समाज यौ। 
दृग लाल परम विशाल शोभित , मुकुट सुभग समारि यौ। 
सिंचित जल रण फिरहि चौदिस , शोभए भुज चल चारि यौ। 
शरण कए मन मोर सिरजल , जगत गति नहि जान यौ। 
कोहि से मन विकल कएलह , शिवदत्त पद भान यौ।
                                                              शिवदत्त  

शुक्रवार, 24 मार्च 2017

715 . समदाउनि ----------- कि कहब जननि कहए नहि आबए छमिअ सकल अपराध।।


                                       ७१५
                                   समदाउनि 
कि कहब जननि कहए नहि आबए छमिअ सकल अपराध।। 
नबओ रतन नव मास वितित भेल तुअ पद लगि परमान। 
चललहुँ आज तेजि सेवकगण आकुल सभक परान।।
सून भवन देखि धिर न रहत हिअ नयन झहरि रह नोर। 
गदगद बोल अम्ब तन धर - धर हेरिअ लोचन कोर।।
चारि मास तत युगसम बुझ पड़ केहि विधि मन धर धीर। 
करुणागार दीन जनतारिणि हरिअ सकल उर पीर।।
मांगथि वर गणनाथ रमेश्वर महाराज अधिराज। 
दारा सुअन सहित मिथिलेश्वर चिर जिवथु शुभकाज।।

बुधवार, 22 मार्च 2017

714 . कमला ----------------- जय जय जगजननि भवानी त्रिभुवन जीवन - रूप।


                                      ७१४
                                   कमला 
जय जय जगजननि भवानी त्रिभुवन जीवन - रूप। 
हिमगिरिनन्दिनि थिकहुँ दयामय कमला कालि स्वरुप।। 
विधि हरि हर महिमा नहि जानथि वेद न पाबथि पार। 
आनक कोन कथा जगदीश्वरि विनमौ बारंबार।।
पूर्वज हमर जतय जे बसला आश्रित केवल तोर। 
श्रीमहेश नृप तखन शुभंकर किंकर भए तुअ कोर।।
विद्या धन निधि विधिवश पबिअ माधवसिंह नरेश।
वागमती तट भवन बनाओल दरभंगा मिथिलेश।।
हमरहु जखन राज सँ भेटल अंश अपन तुअ पास। 
पूर्ण आश धए तृणहिक धरमे कएलहुँ जननि निवास।।
क्रमिक समुन्नति शिखर चढ़ाओल करुणामयि जगदम्ब। 
राज - दार तनया देल सुत - युग राजभवन अविलम्ब।।
वागमतीक त्याग तुअ देखिअ राजनगर तुअ वास। 
राजक केन्द्र प्रधान बनाओल तुअ पद धरि विश्वास।।
सम्प्रति जलमय जगत बनाओल लीला अपरम्पार। 
राजनगर निज रक्षित राखल ई थिक करुण अपार।।
करब प्रसन्न सेवन सँ अंहकेँ ई नहि अछि अब होश। 
वसहज प्रमोद जननि करू सुत पर एकरे एक भरोस।।
जखन शरीर सबल छल तखनहु सेवत नहि हम तोहि। 
अब अनुताप - कुसुम अंजलि तजि किछु नहि फुरइछ मोहि। 
कर युग जोड़ि विनत अवनत भए करथि रमेश्वर अम्ब। 
सत चित आनन्द - रूप - दान मे करब न देवि विलम्ब।।
                                      म ० रामेश्वर सिंह 

मंगलवार, 21 मार्च 2017

713 . भगवती------------------ जय जय सकल असुर कुल नाशिनि , आदि सनातनि माया।


                                      ७१३
                                   भगवती
जय जय सकल असुर कुल नाशिनि , आदि सनातनि माया। 
गिरिवर वासिनि , शंकरवासिनि निज जन पर करू दाया।।
श्यामल रुचिर वदन तुअ राजित तड़ित विनिन्दिक नयने। 
बघछाल पहिरन कटि अति शोभित , फणि कुण्डल युग काने।।
रुचिर मुण्ड - हार उर राजित , खड्ग कर्त्तृवर हाथे। 
मोह कपाल लिधुर परिपूरित , अरु महिषासुर माथे।।
फुजल चिकुर छवि के कवि कहि सक कोउ , लोहित बिन्दु मुराजे।।
पद्मासिनि दाहिन रहु अनुखन , निज सेवक मन जानी। 
मिथिला महिपति शुभमति पूरिअ , विश्वनाथ कवि वानी।।
                                                       विश्वनाथ    

सोमवार, 20 मार्च 2017

712 . दक्षिणकालिका ------- जय जय जननी जोति तुअ जगभरि , दक्षिण पद युत नामे।


                                      ७१२
                              दक्षिणकालिका
जय जय जननी जोति तुअ जगभरि , दक्षिण पद युत नामे। 
शिशु शशि भाल , पयोधर उन्नत , सजल जलद अभिरामे।।
विकट रदन , अतिवदन भयानक , फूजल मञ्जुल केशा। 
शोणितमय रसना अति लहलह , असृकमय  सृक देशा।।
तीन नयन अति भीम राव तुअ , शवकुण्डल दुहु काने। 
शव - कर - काटि सघन पाँती कय , चहुदिशि कटि परिधाने।।
शिव शवरूप उरसि तुअ पद - युग , सदा वास समसाने। 
फरेब कर रब चहुदिशि शोभित , योगिनिधन परधाने।।
श्रीकृष्ण कवि भन , तुअ अपरूप गति , के लखि सक जगमाता। 
मिथिला - पतिक मनोरथदायिनि , सचकित हरिहर धाता।।
                                                             श्रीकृष्ण  

रविवार, 19 मार्च 2017

711 . मातङ्गी ------ राजय जगमग माँ शिवरानिया।


                                        ७११
                                   मातङ्गी  
राजय जगमग माँ शिवरानिया। 
रतन सिंहासन बैसि विण ल' कर बजबैत मधुर लय ध्वनिआँ।। 
चकमक चान चमकि लस भालहिं मधु - मद - मूनल नैन। 
वल्लकि - निक्वण - मोदित कण - कण कलकल कौरमुखक श्रुत बैन।।
विपुल नितम्ब अरुण - पट - मण्डित उरसिज - निहित - निचोल। 
मुसुकि - मुसुकि मधु मतङ्गनन्दिनि शंखपत्र चुम जनिक कपोल।।
कदम - कुसुम - कृत - माल - कलित - धृत कवरि भार , चित्राङ्कित भल। 
न्यस्त एक पद - पदमहिं से रहि दाहिनि ' मधुप 'हुँ करथु नेहाल।।

शनिवार, 18 मार्च 2017

710 . त्रिपुरभैरवी --------- समुदित सहस - सूर्य -किरणाबलि कान्ति - कलित - अभिरामा।


                                     ७१०
                               त्रिपुरभैरवी
समुदित सहस - सूर्य -किरणाबलि कान्ति - कलित - अभिरामा।   
अरुण - क्षौम - परिधान - धारिणी पुर प्रलयंकर वामा।।
वारिजात - वन्दित - वदनश्री स्मित - विजितामृत धामा। 
रक्ते रञ्जित पीनपयोधरवती सर्वदा श्यामा।।
त्रिविध - ताप - तम तरिणि तारिणी रुनझुन रसना - धामा। 
तनुक - तनुक त्रिनयनि त्रिदेव - तोषित पूरित जनकामा।।
पुस्तक - जपमालाभय वर विलसितकर निकर ललाम। 
शिशु - शशि - रत्न - सुशोभि - मकुट - मंडित , खंडित भव - भामा।।
मञ्जु मुंडमाला नागबाला पद - निपतित - सुररामा। 
देथु भैरवी - कामगवी ' मधुप ' हूँ करथु नेहाल।।
                                                         मधुप 

शुक्रवार, 17 मार्च 2017

709 . दुर्गासप्तसती---------------- जय जय दुर्ग - दलनि मन दुर्गे , दुरित निवारिणि माये।


                                    ७०९
                            दुर्गासप्तसती
जय जय दुर्ग - दलनि मन दुर्गे , दुरित निवारिणि माये। 
महिष निशुम्भ शुम्भ सहारिणि , भव तारिण भव जाये।।माहे ० 
अरि सँ मिलि अनुचर नृप सुरथक , जखन हरल धन - धामे। 
एकसर भागि गहन बन अएला जत मुनि मेधस नामे।। माहे ० 
सतत विकल मन घुमइत अनुखन नहि छल किछु विसरामे। 
दुष्टों प्रजाजनक कल्याणक चिन्ता आठो यामे।। माहे ० 
भेटल वैश्य समाधि ततहि जे , छल आकुलित उदासे। 
पुत्र कपुत्र छीनि धन तकरा , देने छल वनवासे।। माहे ० 
परिचय बुझि नृप सुरथ पुछल कहु किए अंह एहन हताशे। 
कहि सभ कथा समाधि , कहल नृप ! सुनिअ हमर अभिलाषे।। माहे ० 
यदपि कुपुत्र भेल , पुनि तकरे , अछि कुशलक जिज्ञासे। 
जानि पड़य नहि हमर किएक मन लपेटल ममता पाशे।। माहे ०
सुनि नृप कहल सुनिअ हमरो मन , अछि एहने अज्ञाने। 
लूटल राज सबहि जन मिलि पुनि तकरे कुशलक ध्याने।। माहे ० 
बुझितहु मन नहि बुझए एकर अछि , कारण कओन विशेष। 
चलु दुहुजन मिलि मेघस ऋषि सँ लेब एकर उपदेश।। माहे ० 
मेधस ऋषिक समीप पहुँचि दुहु नत शिर कएल प्रणामे। 
अति विनीत भए बितल कथा कहि , कहल अपन मनकामे।। माहे ० 
मेधस कहल सुनिअ दुहु जन अहं हमर वचन दए काने। 
थिक मायाक खेल सभटा ई , सुविदित शास्त्र प्रमाने।। माहे ० 
थिकथि योगमाया ई विष्णुक हिनकर चरित अपारे। 
करथि सृष्टि ; पालथि , ओ नाशथि , अपरूप अछि बेबहारे।। माहे ० 
जकर दहिन , ई से नहि धन - सुख पबइत अछि निर्वाने। 
जकर वाम , तकरहि दुख - जीवन , घोर नरक अबसाने।। माहे ० 
मधुकैटभ हनि विधिक कएल जे त्राण प्राण भगवाने। 
से हिनकहि अतुलित बल - महिमें , कहइछ सकल पुराने।। माहे ० 
जखन महिष सन प्रबल असुर सँ हारल देव - समाजे। 
तखन शक्ति ई तकरहु मारल राखल इन्द्रक लाजे।। माहे ० 
दुष्ट निशुम्भ - शुम्भ पुनि देवक , छिनल जखन अधिकारे। 
नाना रूप धएल देवी ई , कएल असुर संहारे।। माहे ० 
धूम्रनयन ओ चंड - मुंड हनि , रक्तक लेलनि पराने। 
भेल अकंटक राज सुरेशक , कएल देव यश गाने।। माहे ० 
एहि विधि जखन दनुज - बाधा सँ हो पीड़िन संसारे। 
तखन - तखन दुष्टक दलनक हित , लेथि देवि अवतारे।। माहे ० 
तेँ अम्बाक ध्यान कए दुहुजन , करू पूजन सविधाने। 
भेटत राज अतल धन पाएब , पाएब सुविमल ज्ञाने।। माहे ० 
सुनि दुहुजन देवीक चरणमे , कएल अपन मन लीने। 
कए संयम पूजल निशिवासर , निद्राहार विहीने।। माहे ० 
तीन वर्ष पर देवि प्रकट भए पुरल दुहुक मन - कामे। 
पलटल सुरथक राज , समाधिक , भेल ज्ञान अभिरामे।। माहे ० 
सएह अहाँ दुर्गे मिथिलेशक , संकट करिअ विनाशे। 
ईशनाथ सुतकेँ नहि बिसरब , अछि मनमे विश्वासे।। माहे ० 
                                                    ईशनाथ झा       

बुधवार, 15 मार्च 2017

708 . धूमावती -------------- धयल षोडसी श्यामा सुषमा धामा अपन नयान।


                                       ७०८
                                   धूमावती
धयल षोडसी श्यामा सुषमा धामा अपन नयान। 
कयल त्रिपुर - सुन्दरी नयन - अभिरामा अनुखन ध्यान।।  
कर - कमला कोमल कमला कय ह्रदय - कमल सन्धान। 
तारिणि तारा तरल द्वितीया दिस टकटकी निदान।।
छली शारदा हमर उपास्या वीणा पुस्त संग। 
स्मितमुखी गीत कवित संगीत ललित लय भरथि उमंग। 
अथवा मदिरारुण - नयन मधु - वयना छवि छविवंति। 
घर - आँगन चानन छिटकाबथि भरथि सुरभि रसवंति।।
किन्तु नियत छल , उचरल मंत्र अदृष्ट , दुष्ट परिणाम। 
इष्ट बनलि आयली घर हमर अदृष्ट देवता वाम।।
धूमावती सती , वयसा वरिष्ठ , वचसा कटु क्लिष्ट। 
रूप बिरुपा , प्रकृति अनूपा , कृतिहु विकृत , नहि शिष्ट।।
मलिनवसन घर - द्वारि बहारथि बाढ़नि हाथहि नित्य। 
जेना कोनो आयलि छथि वेतन - भोगिनि कोनहु भृत्य।।
सूप हाथ किछु किछु सदिखन फटकैत अन्न भरिपुर। 
बिच - बिच गुन - गुन सोहर लगनी गबइत बिनु धुनि सूर।।
शययागृह सँ भनसा - घर जनिका रूचि बढ़ल विसेष। 
जे पड़ोसिनिक बात पुछै छथि , खबरि न देश - विदेश।।
ज्ञान जनिक बच्चा - जच्चा धरि ध्यानों धरे कुटुम्ब। 
अक्षर जनिक गोसानि नाओं धरि पोथी पतरा लम्ब।।
मन छल विमन , कोना खन काटब विरुचि , न रूचि विज्ञानं। 
दृगक प्यास भेटैत कोना ? ताकल भगवति भगवान।।
देखल अहा ! भगवति ! धूमावती निरूपित रूप। 
स्वयं महाविद्या परतच्छे तन - मन सबहु अनूप। 
स्वर्ण अन्न सँ भरल सूप , बाढ़नि स्वच्छता प्रतीक। 
श्रमक स्वास्थ्य - सौन्दर्य दिव्य आन्तरिक रूप रूचि लीक।।
पुनि छलि लगहि छिन्नमस्ता करइत जे नव - संकेत। 
छिन्न अपन मस्तक कय उर - रुधिरहु दय भरी निकेत।।
विदित महाविद्या धूमावति हमर देवता इष्ट। 
धन्य जीवनक क्षण , क्षणभरि यदि दर्शन पुरल अभीष्ट।।
श्यामा उमा अन्नपूर्णा सभ एतय समन्वित रूप। 
धन्य कयल अनुरक्त भक्तकेँ , जयतु देवि अनुरूप।।
                                                  सुरेन्द्रझा ' सुमन '

सोमवार, 13 मार्च 2017

707 . भगवती ------ जय भय भंजनि , सुर - मुनि रञ्जनि , जय इन्द्रादिक शरणे।


                                       ७०७
                                   भगवती
जय भय भंजनि , सुर - मुनि रञ्जनि , जय इन्द्रादिक शरणे।
के नहि पूजि पाओल वांछित फल , श्रुति - वन्दित तुअ चरणे।।
जय जय मधुकैटभ - बधकारिणी महिषासुर कए नाशे। 
सुरगणकेँ स्वर्गहि पठाओल , कएल दूर सभ त्रासे।।
धूम्रनयन सन विकट दैत्य केँ डाहि मिलाओल माटी। 
चण्ड मारि मुंडक दाढ़ी धए , झटिति लेल शिर काटी।।
रक्त बीज सन अतुल पराक्रम जकर न बधक उपाय। 
तकरा दाबि दांतितर लगले काँचे लेलहुँ चिबाए।।
जकरा भय - कातर इन्द्रादिक , स्वर्गहु सँ रहु काते। 
तेहने निशुम्भ - शुम्भकेँ मारल , शमन कएल उतपाते।।
निशिवासर भगवति - पद - सेवक कवि जीवानन्द भाने। 
श्रीकामेश नृपति काँ हेरिह सुरथ नृपाल समाने।।  
                                                                       जीवानन्द 

रविवार, 12 मार्च 2017

706 . काली -------- जय काली कलि कलुष - विनाशिनि जगत जननि जगदम्बे।


                                      ७०६
                                    काली 
जय काली कलि कलुष - विनाशिनि जगत जननि जगदम्बे।
भीत भक्त पर सदय रहब मा दीन हीन अबलाम्बे।।
सुरहुक ऊपर कष्ट पड़ल लखि हरल दुख अविलम्बे। 
शुम्भ निशुम्भ महिष संहारल मारल असुरक दम्भे।।
मानस - निविड़ - तिमिर कुल - नाशन , तुअ पद नख शशि बिम्बे।
' नन्दिनी 'क दिशि ध्यान रहए नित , मिनति एक अछि अम्बे।। 
                                                नन्दिनी देवी 

शनिवार, 11 मार्च 2017

705 . कालिके ------------- जयति जगदम्बिके काली , चरण उर धारि बैसल छी।


                                      ७०५
                                    कालिके 
 जयति जगदम्बिके काली , चरण उर धारि बैसल छी। 
जगत के झूठ ममता मोह , मन सौं टारि बैसल छी।
न जप - तप - ध्यान हम जानी न पूजा पाठ गुरु सेवा।।
जगज्जननीक पूजा - दीप टा हम बारि बैसल छी।
बिताओल तीन पन जगमे बन्हैतहि पाप के मोटा। अपन उद्धार आशा लय विनत हम हारि बैसल छी।
दुखी पद - किंकरी ' ललितेश्वरी ' दिशि हेरु मा काली। 
विकल शरणागता बनि अम्बिके चौपाड़ि बैसल छी।
                                                       ललितेश्वरी देवी 

शुक्रवार, 10 मार्च 2017

704 . सरस्वती ---- दैतय दमनि हंसगमनि काम पालिते।।१।।


                                    ७०४
                                सरस्वती
दैतय दमनि हंसगमनि काम पालिते।।१।।
मन्द हसनि श्वेत वसनि शुक्ल मालिके। 
रुचिर चिकुर चमक चटुल , मधुकरालिके।
कुरव हरणि कुमति तरणि , देवि पालिके। 
इन्द्र शरणि भक्त भरणि , वीण वादिके।।
दिअओ दरश परश पदक , विघ्नहारिके। 
सकल भूप रूप मनक , मोहकारिके।।
यदुनाथ मिश्र ( मैथिली नाटकक उदभव आ विकाश )

गुरुवार, 9 मार्च 2017

703 . जननी ---- क्षमा समुद्र क्षमिय अब जननी कयलहुँ चुक हजारा हे।


                                     ७०३
                                   जननी 
क्षमा समुद्र क्षमिय अब जननी कयलहुँ चुक हजारा हे। 
जननी उदर जखन हम अयलहुँ - कयलहुँ धर्म विचारा हे। 
अबितहिँ एतय सकल हम बिसरल राखल किछु ने विचारा हे। 
धर्म सनातन मर्म न जानल नव - नव सिखल अचारा हे। 
ज्ञान बिना हम ज्ञानी बनलहुँ धर्म - कर्म सौं न्यारा हे। 
परमारथ परलोक बिसरलहुँ डूबय चाहिय मझधार हे।
आर उपाय किच्छु नहि सुझय तुअ पद एक अधारा हे। 
सत्य वचन जय जय करुणामयि दीनक सुनिय पुकारा हे।
अहिँक सकल माया थिक जननी लक्ष्मीपतिक अधारा हे। 
                                                  लक्ष्मीपति ( तत्रैव ) 

702 . जगजननी -- जगत जननी हे सुनु दुःख मोर। भेलहु अनाथ शरण धैल तोर।।


                                      ७०२
                                  जगजननी
जगत जननी हे सुनु दुःख मोर। भेलहु अनाथ शरण धैल तोर।। 
सम्पतिहीन छीन भेल ज्ञान तेँ बिसरल मा तुअ पद ध्यान।।
जत - जत मन मे छल अभिमान। धर खन धैरज रहल न ज्ञान। 
दामोदर कवि गोचर भान। तुअ छाड़ि आहे मा दोसर नहि आन। 
                                                  दामोदर ( तत्रैव ) 

मंगलवार, 7 मार्च 2017

701 . जगदम्बा ---------- जगदम्बा भवानी हे हमरा पर दया किए करती।


                                   ७०१
                               जगदम्बा 
जगदम्बा भवानी हे हमरा पर दया किए करती। 
नाग उपर संसार बिराजै सिंह उपर देवी काली।।
कतेक दल सौ दलमल औती असुर मारि संहारती। 
ब्रह्मा घर ब्रह्माणी कहौती शिवजी के घर गौरी।।
विष्णु घरै मे लक्ष्मी कहौती तीनू लोक के ताड़ती। 
सूरदास प्रभु तुमरे दरस को नित उठि माला जपती।।
                            सूरदास   ( मिथिला संस्कार गीत ) 

सोमवार, 6 मार्च 2017

700 . श्रीगंगा ---- गंगे विनति सुनिय दय कान।


                                    ७००
                                 श्रीगंगा
गंगे विनति सुनिय दय कान। 
हमसन पतित जतेक जगत मे ताहि शरण नहि आन। 
तोर सुयश के कवि वरनन कर , महिमा अपरम्पार।।
पतित उधार करए वसुधा मे अमित वारि बहि धार।।
जे जन तन त्यागधि तुअ तट मे ताहि विमान चढ़ाए। 
त्वरित जाथि लय सुरपुर सब सुर सुमन माल पहिराए।।
आढति कर सुरतिअ प्रमुदित भए निजकर चओर डोलाब।  
अमरराजमे मुखहिं वास कए दिन दिन मोद बढ़ाव।।
' तेजनाथ ' मतिमन्द कहाँ धरि तोहर सुयश करू गान। 
अन्तकाल मे हमरो जननी करब एहि विधि त्राण।।
                                     ( मैथिली गीत रत्नावली )  

699 . जय जय भगवति भवभय हारिणि नाम उदित जगतारे।


                                      ६९९
जय जय भगवति भवभय हारिणि नाम उदित जगतारे।खन निर्गुण खन सगुण विहारिणि असुर संहारिणि तारे।।  
फूजल चिकुर वदन अति शोभित निज जन तारिणि माता। 
हेम कुण्डल श्रुति युगल विराजित कर्तृकमिल अहि काता।।
मुण्डमाल उर लसित बघम्बर भुजग अङ्ग लपटाइ। 
युगल चरण तुअ पंकज राजित सुर नर ध्यान लगाइ।।
एक अभिलाष होत नित अन्तर हरहु हमर दुख भारे। 
तेजनाथ के सकल मनोरथ पुरत शरण गहि तारे।।
                                                                                    ( तत्रैव )

शनिवार, 4 मार्च 2017

698 . जय जय तारे हरु दुख भारे सहस्र सूर तुअ काँती।


                                       ६९८ 
                                    श्रीतारा
जय जय तारे हरु दुख भारे सहस्र सूर तुअ काँती। 
एक जटा तिनि नयन विराजित कुण्डल युगल सुहाती।।
रसना ललित दसन अति शोभित भूषण पन्नग जाती। 
श्याम सरोज कपाल खडग अहि कटि किंकिणि रहु पाती।।
पीन पयोधर युगल लसित उर बाघछाल छवि भ्राजे। 
पद युग कमल सदा सुरसेवित नूपुर अनहद बाजे।।
कत कत दीन दुखी तुअ तारल तेजनाथ धरु आसे। 
भूप रामेश्वर सिंह भक्त तुअ पुरिय तुरित अभिलाषे।।
                            ( भक्ति प्रकाश भजनावली ) 

697 . जय जय काली अरि उर साली सकल भुवन अवलम्बे।


                                    ६९७
जय जय काली अरि उर साली सकल भुवन अवलम्बे। 
सुरपति अनुचर नूतन तन रूचि मुक्त चिकुर जगदम्बे।। 
श्रुति शव कुण्डल तीन विलोचन रसना दसनविकासे। 
मुण्डमाल उर पीन पयोधर खडग खपर सिर पासे।।
कटि कर किंकिणि नूपुर पद रव शव शिव ह्रदय विलासे। 
भूत पिशाच कुतूहल कर बहु योगिनिगण सहवासे।।
सुरमुनि ध्यान करत तव निशिदिन तदपि न पावत ओरे। 
तेजनाथ मतिमन्द शरण तुअ क्षमहु दोष सब मोरे।।
                                                    ( तत्रैव )

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

696 . जगत जननि पद पंकज सजनी मन मधुकर धरु आस।


                                        ६९६ 
जगत जननि पद पंकज सजनी मन मधुकर धरु आस। 
जेहि पद रज यश तिहुपुर सजनी रहत सदा परकास।।
कुमतिहरन मंगलगृह सजनी भंजन यम कृत त्रास। 
जेहि पगु सुमरि सुमरि नित सजनी विद्या ह्रदय निवास।।
अभिनय विघ्न निवारण सजनी पूरण मन अभिलाष। 
तेजनाथ कवि चाहत सजनी चरण कमल हिय वास।।
 तेजनाथ   ( भक्ति प्रकाश - भक्ति रत्नावली , कन्हैयालाल कृष्णदास  , १९९० )

गुरुवार, 2 मार्च 2017

695 . दिन पुन फेरह भुवनेशी , तोहरे वश सभ देशी।


                                    ६९५
दिन पुन फेरह भुवनेशी , तोहरे वश सभ देशी। 
तनु सुषमा अनुहरय देवि तुअ ,  प्रात भानु परिवेशी। 
व्यपल रूप सकल महिमण्डल , सौम्य मनुज उपदेशी।।
तारा निकर चारु चूड़ामणि , लसित गगनमय केशी। 
शारद शुचि अष्टमी कलानिधि , रूचि शिर मुकुट निवेशी।।
मिथिला देश वसय भुवनहि बिच , तोंह थिकह भुवनेशी।।
तौं कत मिथिला देश निवासी ,मानव एहन क्लेशी।।
वर मुद्रा कहिया धरि उगहब , कोमल हाथ निवेशी। 
बेरहु पर तौं अपन भक्त कयँ , अभिलाषा अनुदेशी।।
तेना हाथ निज धरिय माथ पर , मम अभियाभिनिवेशी। 
यहि कराल कलि अन्धकारि पथ , हम ने यथा अब ठेशी।।
शुम्भ निशुम्भ सदृश दुर्जन कं , छाड़िअ जनि लव केशी। 
मारिय अदय अवश्य चण्डिके ! पाश कण्ठ बिच पेशी।।
जीवन झा            ( कविवर जीवन झा रचनावली ) 

बुधवार, 1 मार्च 2017

694 . चामुण्डा ----- जयसि दारुणं वेश धारिणि खड्गपाशिनि हे।।


                                       ६९४
                                   चामुण्डा 
जयसि दारुणं वेश धारिणि खड्गपाशिनि हे।  
भुवन भीषण सिंहनादा दनुज धैर्य विलोपिनी। 
त्वमसि रक्त निमग्न नयना दैत्य गंजनि हे   
शुष्क मांस भयानका कृतिरसुर समुदय पोषिणी। 
द्वीपि चर्म पर वसाना चण्ड धाविनि हे   
मनुजमाला कलित देहा त्वमसि दानव राबिणी। 
असि कराल सुरारि भौकर घोर वक्त्रीणि हे    
सिद्धमुनि बहु विस्मयप्रद कर्मकारिणि हे   
अतुल खट्वायवहस्ता लोलरसना शलिनी। 
हस्तिनी मुरारि रथगज बाजि चर्विणि हे 
भक्त ललितेशानुमोदिनि चण्ड मुण्ड विनाशिनी। 
दीनबन्धुजनैक वालिनि चित्र रूपिणि हे 
                                                        ( तत्रैव )