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श्रीगंगा
गंगे विनति सुनिय दय कान।
हमसन पतित जतेक जगत मे ताहि शरण नहि आन।
तोर सुयश के कवि वरनन कर , महिमा अपरम्पार।।
पतित उधार करए वसुधा मे अमित वारि बहि धार।।
जे जन तन त्यागधि तुअ तट मे ताहि विमान चढ़ाए।
त्वरित जाथि लय सुरपुर सब सुर सुमन माल पहिराए।।
आढति कर सुरतिअ प्रमुदित भए निजकर चओर डोलाब।
अमरराजमे मुखहिं वास कए दिन दिन मोद बढ़ाव।।
' तेजनाथ ' मतिमन्द कहाँ धरि तोहर सुयश करू गान।
अन्तकाल मे हमरो जननी करब एहि विधि त्राण।।
( मैथिली गीत रत्नावली )
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