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जय जय भगवति भवभय हारिणि नाम उदित जगतारे।खन निर्गुण खन सगुण विहारिणि असुर संहारिणि तारे।।
फूजल चिकुर वदन अति शोभित निज जन तारिणि माता।
हेम कुण्डल श्रुति युगल विराजित कर्तृकमिल अहि काता।।
मुण्डमाल उर लसित बघम्बर भुजग अङ्ग लपटाइ।
युगल चरण तुअ पंकज राजित सुर नर ध्यान लगाइ।।
एक अभिलाष होत नित अन्तर हरहु हमर दुख भारे।
तेजनाथ के सकल मनोरथ पुरत शरण गहि तारे।।
( तत्रैव )
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