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जानकी
मङ्गलमयि मैथिलि महारानी।। ध्रु।।
मङ्गलमयि मिथिला भूमिक जे , स्वासिनि सब गुणखानी।
मैथिल जनकाँ मोद प्रदायिनि , महि तनया वर -दानी।।
आदि शक्ति जगतारिणि कारिणि , हरनि सकाल दुखखानी।
श्री साकेतधाम स्वामिनि , श्रीरामचन्द्र पटरानी।।
विष्णु भवन लक्ष्मी रूपा जे , शंकर भवन भवानी।
कृष्ण संग वृषभानु नन्दिनी , विधि घर मधि जे बानी।।
निज जनहित अवतरि महिमण्डल , करथि दुष्ट दलहानी।।
महिमा अमित पार के पाओत , वेद ने सकथि बखानी।।
करू उद्धार कृपामयि मिथिलाकेँ , निज नैहर जानी।
राखु शरण ' यदुवर ' जनकाँ नित रक्षा करू निज पानी।।
( मिथिला - गीतांजलि )
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