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भगवती
जय जय सकल असुर कुल नाशिनि , आदि सनातनि माया।
गिरिवर वासिनि , शंकरवासिनि निज जन पर करू दाया।।
श्यामल रुचिर वदन तुअ राजित तड़ित विनिन्दिक नयने।
बघछाल पहिरन कटि अति शोभित , फणि कुण्डल युग काने।।
रुचिर मुण्ड - हार उर राजित , खड्ग कर्त्तृवर हाथे।
मोह कपाल लिधुर परिपूरित , अरु महिषासुर माथे।।
फुजल चिकुर छवि के कवि कहि सक कोउ , लोहित बिन्दु मुराजे।।
पद्मासिनि दाहिन रहु अनुखन , निज सेवक मन जानी।
मिथिला महिपति शुभमति पूरिअ , विश्वनाथ कवि वानी।।
विश्वनाथ
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