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जगत जननि पद पंकज सजनी मन मधुकर धरु आस।
जेहि पद रज यश तिहुपुर सजनी रहत सदा परकास।।
कुमतिहरन मंगलगृह सजनी भंजन यम कृत त्रास।
जेहि पगु सुमरि सुमरि नित सजनी विद्या ह्रदय निवास।।
अभिनय विघ्न निवारण सजनी पूरण मन अभिलाष।
तेजनाथ कवि चाहत सजनी चरण कमल हिय वास।।
तेजनाथ ( भक्ति प्रकाश - भक्ति रत्नावली , कन्हैयालाल कृष्णदास , १९९० )
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