७०७
भगवती
जय भय भंजनि , सुर - मुनि रञ्जनि , जय इन्द्रादिक शरणे।
के नहि पूजि पाओल वांछित फल , श्रुति - वन्दित तुअ चरणे।।
जय जय मधुकैटभ - बधकारिणी महिषासुर कए नाशे।
सुरगणकेँ स्वर्गहि पठाओल , कएल दूर सभ त्रासे।।
धूम्रनयन सन विकट दैत्य केँ डाहि मिलाओल माटी।
चण्ड मारि मुंडक दाढ़ी धए , झटिति लेल शिर काटी।।
रक्त बीज सन अतुल पराक्रम जकर न बधक उपाय।
तकरा दाबि दांतितर लगले काँचे लेलहुँ चिबाए।।
जकरा भय - कातर इन्द्रादिक , स्वर्गहु सँ रहु काते।
तेहने निशुम्भ - शुम्भकेँ मारल , शमन कएल उतपाते।।
निशिवासर भगवति - पद - सेवक कवि जीवानन्द भाने।
श्रीकामेश नृपति काँ हेरिह सुरथ नृपाल समाने।।
जीवानन्द
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें