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कालिके
जयति जगदम्बिके काली , चरण उर धारि बैसल छी।
जगत के झूठ ममता मोह , मन सौं टारि बैसल छी।।
न जप - तप - ध्यान हम जानी न पूजा पाठ गुरु सेवा।।
जगज्जननीक पूजा - दीप टा हम बारि बैसल छी।।
बिताओल तीन पन जगमे बन्हैतहि पाप के मोटा। अपन उद्धार आशा लय विनत हम हारि बैसल छी।।
दुखी पद - किंकरी ' ललितेश्वरी ' दिशि हेरु मा काली।
विकल शरणागता बनि अम्बिके चौपाड़ि बैसल छी।।
ललितेश्वरी देवी
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