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दक्षिणकालिका
जय जय जननी जोति तुअ जगभरि , दक्षिण पद युत नामे।
शिशु शशि भाल , पयोधर उन्नत , सजल जलद अभिरामे।।
विकट रदन , अतिवदन भयानक , फूजल मञ्जुल केशा।
शोणितमय रसना अति लहलह , असृकमय सृक देशा।।
तीन नयन अति भीम राव तुअ , शवकुण्डल दुहु काने।
शव - कर - काटि सघन पाँती कय , चहुदिशि कटि परिधाने।।
शिव शवरूप उरसि तुअ पद - युग , सदा वास समसाने।
फरेब कर रब चहुदिशि शोभित , योगिनिधन परधाने।।
श्रीकृष्ण कवि भन , तुअ अपरूप गति , के लखि सक जगमाता।
मिथिला - पतिक मनोरथदायिनि , सचकित हरिहर धाता।।
श्रीकृष्ण
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