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दिन पुन फेरह भुवनेशी , तोहरे वश सभ देशी।
तनु सुषमा अनुहरय देवि तुअ , प्रात भानु परिवेशी।
व्यपल रूप सकल महिमण्डल , सौम्य मनुज उपदेशी।।
तारा निकर चारु चूड़ामणि , लसित गगनमय केशी।
शारद शुचि अष्टमी कलानिधि , रूचि शिर मुकुट निवेशी।।
मिथिला देश वसय भुवनहि बिच , तोंह थिकह भुवनेशी।।
तौं कत मिथिला देश निवासी ,मानव एहन क्लेशी।।
वर मुद्रा कहिया धरि उगहब , कोमल हाथ निवेशी।
बेरहु पर तौं अपन भक्त कयँ , अभिलाषा अनुदेशी।।
तेना हाथ निज धरिय माथ पर , मम अभियाभिनिवेशी।
यहि कराल कलि अन्धकारि पथ , हम ने यथा अब ठेशी।।
शुम्भ निशुम्भ सदृश दुर्जन कं , छाड़िअ जनि लव केशी।
मारिय अदय अवश्य चण्डिके ! पाश कण्ठ बिच पेशी।।
जीवन झा ( कविवर जीवन झा रचनावली )
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