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ब्रह्माणी
ब्रह्मशक्ति जे चढिय आइलि , हंसयुक्त विमान यो।
कमल आसन देखु सुन्दर , शोभए कुण्डल कान यो। ।
चारि मुख तह वेद बाँचथि , पीत वसन विराज यो।
कुश कमण्डलु दण्ड लय कर , चललि दैत्य समाज यौ।।
दृग लाल परम विशाल शोभित , मुकुट सुभग समारि यौ।
सिंचित जल रण फिरहि चौदिस , शोभए भुज चल चारि यौ।।
शरण कए मन मोर सिरजल , जगत गति नहि जान यौ।
कोहि से मन विकल कएलह , शिवदत्त पद भान यौ।।
शिवदत्त
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