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काली
जय काली कलि कलुष - विनाशिनि जगत जननि जगदम्बे।
भीत भक्त पर सदय रहब मा दीन हीन अबलाम्बे।।
सुरहुक ऊपर कष्ट पड़ल लखि हरल दुख अविलम्बे।
शुम्भ निशुम्भ महिष संहारल मारल असुरक दम्भे।।
मानस - निविड़ - तिमिर कुल - नाशन , तुअ पद नख शशि बिम्बे।
' नन्दिनी 'क दिशि ध्यान रहए नित , मिनति एक अछि अम्बे।।
नन्दिनी देवी
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