ADHURI KAVITA SMRITI
गुरुवार, 9 मार्च 2017
702 . जगजननी -- जगत जननी हे सुनु दुःख मोर। भेलहु अनाथ शरण धैल तोर।।
७०२
जगजननी
जगत जननी हे सुनु दुःख मोर। भेलहु अनाथ शरण धैल तोर।।
सम्पतिहीन छीन भेल ज्ञान तेँ बिसरल मा तुअ पद ध्यान।।
जत - जत मन मे छल अभिमान। धर खन धैरज रहल न ज्ञान।
दामोदर कवि गोचर भान। तुअ छाड़ि आहे मा दोसर नहि आन।
दामोदर ( तत्रैव )
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