शनिवार, 4 मार्च 2017

697 . जय जय काली अरि उर साली सकल भुवन अवलम्बे।


                                    ६९७
जय जय काली अरि उर साली सकल भुवन अवलम्बे। 
सुरपति अनुचर नूतन तन रूचि मुक्त चिकुर जगदम्बे।। 
श्रुति शव कुण्डल तीन विलोचन रसना दसनविकासे। 
मुण्डमाल उर पीन पयोधर खडग खपर सिर पासे।।
कटि कर किंकिणि नूपुर पद रव शव शिव ह्रदय विलासे। 
भूत पिशाच कुतूहल कर बहु योगिनिगण सहवासे।।
सुरमुनि ध्यान करत तव निशिदिन तदपि न पावत ओरे। 
तेजनाथ मतिमन्द शरण तुअ क्षमहु दोष सब मोरे।।
                                                    ( तत्रैव )

कोई टिप्पणी नहीं: