७१५
समदाउनि
कि कहब जननि कहए नहि आबए छमिअ सकल अपराध।।
नबओ रतन नव मास वितित भेल तुअ पद लगि परमान।
चललहुँ आज तेजि सेवकगण आकुल सभक परान।।
सून भवन देखि धिर न रहत हिअ नयन झहरि रह नोर।
गदगद बोल अम्ब तन धर - धर हेरिअ लोचन कोर।।
चारि मास तत युगसम बुझ पड़ केहि विधि मन धर धीर।
करुणागार दीन जनतारिणि हरिअ सकल उर पीर।।
मांगथि वर गणनाथ रमेश्वर महाराज अधिराज।
दारा सुअन सहित मिथिलेश्वर चिर जिवथु शुभकाज।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें