शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

648 . जौं मोर विनति धरब देवि कान।


                                      ६४८
                                   श्रीदेवी
जौं मोर विनति धरब देवि कान। 
तौं मोर एक विपत्ति नहि अनुभव सतत रहत कल्यान। शान्ति स्वाभाव दैव नहि देलनि पाप पटल परधान।।
उदरम्भरि भरि जनम कहाओल त्याग नै पतितक दान।।
वृद्ध वयस किछु साधन सिद्धि न वञ्चक मे बलवान। 
एहन पातितकें के धुरि ताकत अम्बा तुअ---------------- 
कह कविचन्द्र मन्द कलिकाल मे पापी हम ----
प्रायः केओ देखि नहि पड़इछ हमर प्रबल।---------- 
( तत्रैव ) 

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

647 . तों हीं गौरी तों हीं वाणी तों हीं रमा महारानी।


                                      ६४७ 
                                  श्रीश्यामा 
तों हीं गौरी तों हीं वाणी तों हीं रमा महारानी। 
पूजा पटल एक न जानी करम दोषे पतित प्रानी।।
तों हीं पुरुष तों हीं नारी तों हीं थावर जंगम चारी। 
तों हीं अनल तों हीं वारी तों हीं पवन धरणि धारी।।
हमर दूषण क्षमा करब भगति भावे ह्रदय भरब। 
भक्तक सकल संकट हरब संसार सागर तैं हम तरब!!
करह दया देवी श्यामा कुशल राखह सबहि ठामा। 
दुर्जन मण्डलि करह क्षमा गोचर करथि चन्दा नामा।।
                               ( चन्द्र रचनावली )

बुधवार, 28 दिसंबर 2016

646 . मैया महेशी कलेश हरु मोर , त्यागू ने देवी उदारपना।


                                     ६४६
                               श्रीमहेश्वरी
मैया महेशी कलेश हरु मोर , त्यागू ने देवी उदारपना। 
वाणी आहाँ छी सची छी अहाँ , हरिलक्ष्मी अहीं छी अनन्तघना।।
पालै छी विश्व चराचर कै पुनि घालै छी दानव दैत्य गना। 
मायासौं मोहित लोक करी पुनि विद्या अहीं छी आनन्दघना।।
तंत्र ने जानी ओ मन्त्र ने जानी कुकर्मपनामे ने मानी मना। 
भारी भरोस अहैंक सदा दया देखू करू कविचन्द जना।।
                                                                  ( तत्रैव )    

मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

645 . जय जय गिरिवर नन्दिनि त्रिजगत वन्दिनि हे।


                                       ६४५
                                   श्री गौरी
जय जय गिरिवर नन्दिनि त्रिजगत वन्दिनि हे। 
जय जय जनभय भंजिनि असुर निकन्दिनि हे।
जय जय मृगपति चारिणि दुरित विदारिणि हे। 
महिष महासुरमारिणि शिव वसकारिणि हे 
जय जय मङ्गलदायिनि सुकृत विधायिनि हे। 
शंकर ह्रदय सरोजनाद दसगायिनि हे 
गौरी गुणाकर देवि सेवि सुख पावथि हे। 
अखिल मनोरथ पूर चंद्र्गुण गावथि हे 
                                                          ( तत्रैव )

सोमवार, 26 दिसंबर 2016

644 . जय दिग्वसना।। फूजल चिकुर विकट दशना।।


                                     ६४४
                                 श्रीश्यामा
जय दिग्वसना।। फूजल चिकुर विकट दशना।।
प्रलय पयोद कान्ति धरानन जय जय अट्टहास व्यसना।। 
तन छन छिन्न मुण्ड असि निर्भय वर कर लह लह लह रसना।।
नर कर कृत कान्ची मुण्डावलि धरा असुर विग्रह ग्रसना।।
शोणित पान वदन सौं निसृत विस्तृत नियत धार लसना।।
तुअ उर दिनकर हिमकर ग्रहगण समन सतत वहै स्वसना।।
' चन्द्र ' चूड़ क्षेमंकरि श्यामा जय जय काल विभव अशना।।
                                           ( चन्द्र रचनावली )   

रविवार, 25 दिसंबर 2016

643 . से करू देवि दयामयि हे , थिर रह महाराज।


                                    ६४३
से करू देवि दयामयि हे , थिर रह महाराज। 
पूरिअ हमर मनोरथ हे , केकयि नहि बाज।।
नृपतिक ह्रदय ककर वश हे , ककरो नहि मीत। 
सौतिनि सामरि सौंपिन हे , मन हो भयभीत।।
तुअ शंकरि हम किंकरि हे , यावत रह देह। 
तुअ पद कमल नियत रह हे , मोर अचल सिनेह।।
रामचन्द्र सीतापति हे , होयता युवराज। 
त्रिभुवन आन एहन सन हे , नहि हित मोर काज।।
                                                       ( रामायण ) 

शनिवार, 24 दिसंबर 2016

642 . रहू देवि दासी विषय सहाय।


                                    ६४२
रहू देवि दासी विषय सहाय। 
जय जय जगदीश्वर - वामांगी जय जय गणपति - माय।। 
अतिशय चिन्ता मन में छल अछि नृपति कठिन पण पाय।
दरशन देल भेल मन - वान्छित चिन्ता गेलि मेटाय।।
सकल सृष्टि कारिणि जगतारिणि महिमा कहल न जाय।
जगदम्बा अनुकूला अपनहि हम की देब जनाय।।
रामचन्द्र सुन्दर वर जै विधि होथि महीप - जमाय। 
जय जय जननी सनातनि सुन्दरि तेहन रचब उपाय।।
                                                     ( रामायण )  

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

641 . जय देवी महेश - सुन्दरी। हम छी देवि अहाँक किंकरी।।


                                   ६४१
जय देवी महेश - सुन्दरी। हम छी देवि अहाँक किंकरी।।
शिव देह निवास कारिणी। गिरिजा भक्त - समस्त तारिणी।। 
हम गोड़ लगैत छी शिवे। जननी भूधरराज - सम्भवे।।
जनता - मन - ताप - नाशिनी। जय कामेश्वरि शम्भु लासिनी।।
महादेव रानी सती श्री मृडानी। सदा सचिदानन्द रूपा अहैं छी।।
अहाँ शैल राजाधिराजाक पुत्री। धरित्री सावित्रीक कत्रीं अहैं छी।
अहाँ योगमाया सदा निर्भया छी। दया विश्व चैतन्य रुपे रहै छी। 
सदा स्वामिनी सानुकूला जतै छी। धनुर्भअंग चिन्ता ततै की सहै छी। 
अपने काँ हम गौरि की कहू। अनुकूला जनि में सदा रहू।।
हमरा जे मन मध्य चिन्तना। सबटा पूरब सहै प्रार्थना।।
                                           चन्दा झा ( रामायण ) 

गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

640 . श्रीतारा-जय जय भयहरनि , मंजुहासिनि , मधुदमन


                                      ६४० 
                                  श्रीतारा
जय जय भयहरनि , मंजुहासिनि , मधुदमन कञ्जआसनि , शिवसेवित पद कमल तारिणी।।
नवल जलद मञ्जु भास , ज्वलित प्रेम भूमिवास , मुण्डमाल अंति विलास विपदहारिणी।।
तीन नयन अरुण वरन , विश्वव्यापि सलिल सरन ,
ललित धवल कमल युगल चरणधारिणी।।
लम्ब उदर खर्च रूप द्विपि अजिन कटि अनूप 
चपल रसन विकट दसन दुरित दारिणी।।
मुद्रापञ्च लसत माथ, खड्ग काति दहिन हाथ ,
बाम मुण्ड कुबल मौलि अक्षौभधारिणी।।
भनत हर्षनाथ नाम , जनक नगर नृपति काम ,
पुरिअ परम करुणधाम भक्ततारिणी।।
                                ( हर्षनाथ काव्य ग्रन्थावली )  

बुधवार, 21 दिसंबर 2016

639 . श्रीवनदुर्गा - जय जय विंध्यनिवासिनि। तनु रूचि निन्दित दामिनि।।


                                      ६३९
                                श्रीवनदुर्गा 
जय जय विंध्यनिवासिनि। तनु रूचि निन्दित दामिनि।।
आनन शशधर मण्डल। तीनि नयन श्रुति कुण्डल।।
कनक कुशेशय आसन। वसय निकट पञ्चानन।।
शंख चक्र निरभय वर। कर धरु शशधरशेखर।।
तुअ पद पंकज मधुकर। हर्षनाथ भन कविवर।।
                              ( हर्षनाथ काव्य ग्रन्थावली ) 

मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

638 .जय जगजननी जय जगजननी देहु सुमति मृगपति गमनी।


                                     ६३८
जय जगजननी जय जगजननी देहु सुमति मृगपति गमनी।
सरसिरुहासन विपदविनाशन कारिणि मधुकैटभदमनी।।
दिति सुत रञ्जन सुरगणभन्जन महिष महासुर बलदलनी। 
त्रिभुवनतारिणि महिषविदारिणि  धूसर नयन भसम करनी।।
 चण्ड  मुण्ड सिर खण्डनकारिणि उन्मातरक्तबीज शमनी। 
अतिबल शुम्भ निशुम्भ विनाशिनि निजजनसकल विपद हरनी।।
तुअ गुण निगम अगम चतुरानन कहि न सकत कत सहस्रफणी। 
अमर निशाचर दनुज मनुज शिर चिकुर कलित जित रकतमनी।।
तुअ पद युगल सरोरुह मधुकर हर्षनाथ कवि सरस भनी।।
                                       ( माधवानन्द नाटक )

शनिवार, 10 दिसंबर 2016

637 . जय जय महिष विनाशिनि भगवति सिंहगमनि जगदम्बे।


                                    ६३६ 
                                              श्रीदुर्गा 
जय जय महिष विनाशिनि भगवति सिंहगमनि जगदम्बे। 
त्रिभुवनतारिणि विपदनिवारिणि सकल भुवन अवलम्बे।।
त्रिदश तपोधन दनुज मनुज गण चिकुर निकल अभिरामे। 
तुअ पद चिन्तन विमुख सतत मन किदहु होएत परिणामे।।
हमर दुरित मति जानि सकल गति करिअ न अतिशय रोषे। 
तनय रहित मति करय अनत गति कहिअ ककर थिक दोषे।।
तुअ गुण निगम अगम हरिहर विधि कहि न सकथि अनुपामे। 
अनेक जनम तप करथि जतन दय तुअ पद दरशन कामे।।
क्षमिय हमर अपराध कृपामयि करिअ अभय वर दाने। 
गिरिनन्दिनी पद पंकज मधुकर हर्षनाथ कवि भाने।।
                                                            ( तत्रैव )

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

636 . श्री सरस्वती-जय जय कुमति विनाशिनि देवि। सभ अभिमत पुर तुअ पद सेवि।।


                                       ६३६
                                            श्री सरस्वती
जय जय कुमति विनाशिनि देवि। सभ अभिमत पुर तुअ पद सेवि।।
तनु रूचि निन्दित कुन्दक भास। आनन रूचि शशि बिम्ब उदास।।
आसन धवल कमल शशि भाल। श्वेत वसन लस नयन विशाल।।
वीणा दण्ड कलश धर हाथ। जपमाला वर पुस्तक साथ।।
हर्षनाथ कवि मनदय भान। भगवति करिय अभय वरदान।।
हर्षनाथ                    ( उदाहरण नाटिका )  

635 . अनकही व्यथा !


                                      ६३५ 
                              अनकही व्यथा !
भाषा की समस्या हो सकती है , विषय से विषयांतर हो सकता है , मत से मतान्तर हो सकता है , तथापि आप एक बार मेरे भावों को आत्मसात करने का प्रयास करें , अन्य दोषों को नजरअंदाज करें। 
मैं बिहार के एक छोटे से शहर समस्तीपुर में पहली बार पदस्थापित हुआ। इस कंपनी की स्थापना १९५४ ई में भारत सरकार की प्रथम जीवन रक्षक दवा कम्पनी के रूप में हुई थी। प्रथम बार २४ - ०९ - १९८१ में TMR के रूप में बाजार से परिचय करवाया था। यह सेवा १५ - ०७ - १९८३ तक जारी रही। फिर ०६ - १० - १९८७ में पुनः सेवा शुरू कर पाया। 
देश अनेक झंझावातों के दौर से गुजर रहा है।  ब्रिटिश सरकार के स्वार्थपूर्ण पेटेंट १९११ को बदलने में हमें आजादी के बाद २३ वर्ष लगे और १९७० में हमारा पेटेंट एक्ट बना और जहाँ आजादी के बाद ६५ -/- हिस्सेदारी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की थी वहीँ १९८५ तक हम ७० -/- के हिस्सेदार हो गए और उत्पादन से लेकर तकनिकी तक में आत्मनिर्भर हो गए , परन्तु इस प्रक्रिया को उलटने का कार्य विदेशी दबाब एवं धन के बल पर देश की अस्मिता को वर्तमान प्रधानमन्त्री ने गिरवी रख दिया है। जिसकी प्रक्रिया पूर्व के प्रधानमंत्री के कार्य काल में ही प्रारम्भ हो गयी थी।  और हमारी खुशहाली की प्रक्रिया ही उलट गयी। हमारा देश जो विश्व में सबसे अधिक बेरोजगारी का दंश झेल रहा था उसमे लाखों रोजगारों को करोड़ों रुपये खर्च कर बेरोजगार बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गयी। 
साथियों प्रारम्भ में एच ए  एल में मात्र १३ एम् आर के द्वारा अस्पतालों में कार्य प्रारम्भ किया गया जो १९७९ के शुरू तक चलता रहा और १९७९ - १९८० में अस्पताल और ट्रेड सेक्टर में ६० एम् आर के द्वारा कार्य प्रारम्भ हुआ जो मुख्य रूप से इन एस ए थी वह भी जेनेरिक रूप में। उस समय भी एम् आर को कहा जाता था कि ट्रेड पर ध्यान दो और दवा अस्पताल का उपलब्ध रखा जाता था। मुख्य रूप से सैम्पल भी NSA ही होता था यह भी जेनेरिक रूप में और शार्ट एक्सपाइरी।  अपर्याप्त एवम अनियमित सैम्पल देकर TMR को कहा जाता था टारगेट पूरा करने के लिए। विजुअल ऐड का दवा की उपलभ्दता से कोई सरोकार नहीं होता था। परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में दवाइयां एक्सपायर हो जाती थी और खामियाजा एम् आर को नौकरी गँवा कर देनी पड़ती थी। लालफीताशाही चरम पे थी। 
दवाओं के मामले में बदनाम किये  गए  सार्वजनिक क्षेत्र के दो महँ योगदान को बहलाया नहीं जा सकता है  , पहला इसने दूसरे दवाओं की कीमतों को आशर्चजनक रूप से घटाया और दूसरा   में फैक्ट्री स्थापित करने पर मजबूर किया। 
क्या यह कहना मात्र एक आरोप होगा की हमारे देह के नेता और अफसर भ्रष्ट हैं , करोड़ों अरबों का घोटाला करने वाली सरकार का प्रधानमंत्री और पूरा कैबिनेट हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट का चक्कर लगा रही है , कुछ को सजा  है और कुछ  है। ऐसे  किसी सार्वजानिक कंपनी की बागडोर किसी के हाथ  हैं तो उनके स्वार्थ स्पष्ट होते हैं। अपने चापलूसों को उसमे भरते हैं और ऐसी परिस्थितियां पैदा करते हैं की वह  कंगाल हो जाये और वह सार्वजानिक संपत्ति उनके भाई भतीजे खरीद ले।  
क्रमशः 

गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

634 . वलित चञ्चल चारु लोचनि भय विमोचनि सदय भगवति हे।


                                     ६३४
वलित चञ्चल चारु लोचनि भय विमोचनि सदय भगवति हे। 
रुचिर भूषण तनु विभूषित बिन्दु विलसित हनुमति हे !!
हरविहारिणि मुक्ति कारिणि भगततारिणि सुर शुभंगकरि हे। 
गिरिनिवासनि शुम्भनाशिनि बलिपलाशिनि रिपु भयंगकारि हे। 
चक्र शूल कृपाण शरधनु कुलिश तोमर उरग धारिणि हे। 
सिंहवाहिनि विभवदायिनि परमभाविनि महिषदारिणि हे।!
बादंलोहित देहशोभित कयल मोहित सकल अरिदल हे। 
स्फुरित चाप निनाद सुनि सुनि त्वरित हरषित पड़ल निजवल हे।!
भानुनाथ सुदान मांगथि संग कय तोहि नयन हुत भुग हे। 
श्रीमहेश्वर सिंह भूपति सुत विनोदित जिवथि युग - युग हे।!
                                                     ( तत्रैव ) 

शनिवार, 3 दिसंबर 2016

633 . जय जय त्रिभुवन सुन्दरि भगवति कृत बहु विध वर रुपे।


                                     ६३३
जय जय त्रिभुवन सुन्दरि भगवति कृत बहु विध वर रुपे।
सिन्दुर पूर रुचिर तुअ अम्बर त्रिनयन वलित अनूपे।।
अरुण सरोरुह निहित चरण युग विहित वाल शशि भाले। 
ललित चतुर्भुज कलित अभय वर पुस्तक विरचित माले।।
तरुण वयस शिशु दिनकर रूचि तनु सतत पुरित मुख हासे। 
सुरगुरु सुरपति दुनुहुँ तुलित भेल जे जन तुअ पगु दासे। 
त्वरित दुरित चय भारनिकन्दिनि रचित मनोरम हारे। 
धरम करम उपगत रह ये जन तनिक परम सुख सारे।।
आगम चिलिखित तुअ गुन गाओल विमल नृत्य दिअ दाने। 
सकल सभा जय करू परसनि भय भानुनाथ कवि भाने।।
भानुनाथ ( प्रभावतीहरण नाटक )  

गुरुवार, 1 दिसंबर 2016

632 . सुमरि दुर्गाचरण - सारस भजिअ - मानस लाए।


                                   ६३२
सुमरि दुर्गाचरण - सारस भजिअ - मानस लाए। 
पुरन हे सखि कामना तुअ गौरी भक्त सहाए।।
देवता सभ विपति पड़ि गेल तखन कएल विचार। 
भजिअ सभ मिलि देवि दुर्गे अनि नहीं परकार।।
तखन सुरसरि तीर गए कह सखि आराधन भेल। 
छुटल सभ दुख मोदमय भए भवन निज सभ गेल।।
एहि उत्तर चित्रलेखा कएल दुर्गा भक्ति। 
गमन वाणि तखन भए गेल काज साधन शक्ति।।
रत्नपाणि विचारि भाखथि सुनिअ करिअ विचार। 
सतत दुर्गा चरण सेविअ आन नहि परकार।।
                                         ( हिस्ट्री ऑफ़ मैथिली लिटरेचर )  

बुधवार, 30 नवंबर 2016

631 . देवीक आरती-शुभ आरति जगदम्ब तिहारी। देखि समूह गिरिराज कुमारी।।


                                        ६३१
                                देवीक आरती 
शुभ आरति जगदम्ब तिहारी। देखि समूह गिरिराज कुमारी।।
दीपक दीप पंचमुख धारी। ता मँह घृत कर्पूर सम्हारी।।
वीरा जनमन करत विचारी। प्राप्त समय अति सम सुखकारी।।
शिव विरंचि सनकादि मुरारी। कर आरति तुअ जगत विचारी।।
रत्नपाणि फल चाहत चारी। देहु जननि फल अति शुभकारी।।
                                                   ( मैथिल भक्त प्रकाश )  

मंगलवार, 29 नवंबर 2016

. 630 . देवी श्रृंगार - सकल श्रृंगार सुभग शुभ वेशा। नृप गृह देवि कयल परवेशा।



                                     ६३० 
                               देवी श्रृंगार
सकल श्रृंगार सुभग शुभ वेशा।  नृप गृह देवि कयल परवेशा।
दिन दिन मंगल कारिणि धन्या। सिंह चढ़ल राजै गिरिकन्या।।
शारद चंद सुरुचि चय देहा। कृपा विलोचनि भक्त सिनेहा।।
क्षमा करिअ निज जन अपराधें। त्रिभुवन तारिणि शील अगाधे।।
रत्नपाणि कर गोचर आजे। सतत परिय मिथिलेशक काजे।।
                                                                        ( तत्रैव )  

सोमवार, 28 नवंबर 2016

629 . श्रीमहासरस्वती - दनुज दलित दुर्गे भयहारिणि जय पूरित मनकामे।


                                  ६२९
                        श्रीमहासरस्वती 
दनुज दलित दुर्गे भयहारिणि जय पूरित मनकामे। 
शुम्भ निशुम्भ निसुदिनि भगवति महासरस्वति नामे।।
धन रूचि केश भेष अति शोभित आनन आनन्द कंदा। 
तीनि नैन छवि अतिहि विराजित भालब्याल तनु चन्दा।।
सूल शंखरथि अंक वाण तुअ दहिन भाग कर चारी । 
घन हल पुनु मुसल सराशन वाम भाग कर धारी।।
अनुगति शंकरि असुर भयंकरि सारद शशि सम देहा। 
बाहन सिंह लसै तुअ अनुपम निज जन परम सिनेहां।।
रत्नपाणि कर पुट कय जाचति सुनिये देवि मन लाई। 
मिथिलापुर के पुरिये मनोरथ निसदिन रहिये सहाई।।
                         ( मैथिल भक्त प्रकाश )

रविवार, 27 नवंबर 2016

628 . श्रीमहालक्ष्मी - जै कमला कमलायत लोचनि भव भय मोचनि कन्या।


                                    ६२८
                           श्रीमहालक्ष्मी
जै कमला कमलायत लोचनि भव भय मोचनि कन्या। 
धन रूचि कुच चामी कर तनु रूचि चारि भुजा अतिधन्या।।
चारु किरीट विराजित मस्तक धारिनि पाटक चीरे। 
लसय वराभय कर दूई दुह पदमयुगल सुधीरे।।
चारि कनकघट भरत सुधारस अमृत गज कर लाए। 
वाम दहिन भय सिञ्चित कर मुख कमल मनोहर जाए। 
मणिगण जटित लसित भूखण तनु करुणा करू जगमाता।।
शंकर किंकर इन्द्र आदि सुर सेवक जनिक विधाता।।
पंकज आसन परम विकासन ताहि उपर लस देवी। 
रत्नपाणि तसु ध्यान मगन मन श्रीमिथिलेशक सेवी।।
                                                            ( तत्रैव )  

शनिवार, 26 नवंबर 2016

627 . श्रीमातंगी - कीरक सम रूचि स्याम सुतनु लस माणिक भूषित देहा।


                                    ६२७
                               श्रीमातंगी
कीरक सम रूचि स्याम सुतनु लस माणिक भूषित देहा। 
शिशु शशि भाल मुक्तामणि हासमुखी शुभ गेहा।।
निज पद विनत विभव वरदायिनि तीनि नयन तुअ भासे।
सुर मुनि आदि सकल जन सेवित चरण विजित परवासे।।
कटुक सुवास पान आरतमुख कर वर राजय बीना। 
रत्न सिंहासन ऊपर राजित षोडस बैस नवीना।।
दहिना हाथ दुऊ असि अंकुश लस पास सुखेटक वामे। 
अष्ट सिद्धि मयि सिद्धि सरूपा मातंगी जसु नामे।।
मिथिलापतिक पुरिय अभिलाषा निज पद नत अवलम्बे। 
रत्नपाणि तुअ पद युग सेवक गोचर करू जगदम्बे।।
                                    ( तत्रैव )   

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

626 . श्रीबगलामुखी - जय बगलामुखि अमृत सिन्धु बिच मणि मण्डप निधि देवी।


                                ६२६ 
                        श्रीबगलामुखी 
जय बगलामुखि अमृत सिन्धु बिच मणि मण्डप निधि देवी। 
ता बिच रत्न सिंहासन ऊपर तुअ पद लस भय भेदी।।
पीत वसन तुअ पीत विभूषण पीत कुसुममय माला। 
फूजल चिकुर निकर दुइ लोचन दुखमोचनि हरबाला। 
वाम हाथ रिपु रसन रक्तमय दहिन गदा अभिरामा। 
अनुगत जन जयकारिनि सुररिपु मर्दिनि पूरनकामा।।
कुण्डल लसित गण्ड मण्डल युग चण्ड भानु युग जोती। 
विपति विदारिनि रिपु मद हारिनि दन्त विराजित मोती।।
श्रीमिथिलेशक करू जय देवी पुरित करू सभ आसे। 
रत्नपाणि गोचर करू भगवति करू मम ह्रदय निवासे।।
                                                         ( तत्रैव )

शनिवार, 12 नवंबर 2016

625 . श्रीधूमावती - जय धूमावति जगत विदित गति श्याम रुच्छ तनु भासे।


                                      ६२५ 
                                श्रीधूमावती 
जय धूमावति जगत विदित गति श्याम रुच्छ तनु भासे। 
फूजल चिकर निकर अति लंबित तनु अनु छवि आकासे।।
कलह प्रेम अनुखन तोहि भगवति अम्बर मलिन शरीरे। 
दसन विकट अति विशद विरल गति स्वेद वह्य तनु धीरे।।
क्षुधित सतत मन रुच्छ त्रिलोचन कुक्ष सूप सन तोही। 
तरल सुभाव दुसह मन अनुखन जन उद्वेगन मोही।।
वायस रथ तुअ देवि त्रिलोचन वास रूचय समसाने। 
कउखन सुन्दरि अनुपम रूचि धरि कउखन परम भयाने।।
रत्नापाणि भन हरिय मुदित मन निज सेवक मोहि जानि। 
सदा करिअ मिथिलेशक मंगल गोचर सुनिय भवानि।।
                                                ( तत्रैव )

शुक्रवार, 11 नवंबर 2016

624 . श्रीछिन्नमस्ता - जय जगज्योति जगत गतिदाइनि चिकुर चारु रूचि भाले।


                                      ६२४
                             श्रीछिन्नमस्ता
जय जगज्योति जगत गतिदाइनि चिकुर चारु रूचि भाले। 
परम असम्भव सम्भव तुअ वस पीन पयोधर वाले।।   
कमलकोष रविमण्डल ता विच त्रिविध त्रिकोणक रेषा। 
ता विच रति विपरीत मनोभव सुषमा सरित विशेषा।।
पद आरोपित पत्र लस तापर अरुण भान शशि रेहा। 
उर सविशाल भाल रिपु मुण्डक फणि उपवीत सुरेहा।।
दक्षिण कर करवाल वाम कर निज शिर अति विकराले। 
लइलह रसन दशन कटकट कर फूजल केश विशाले।।
निज गण कलित उपर कय रुधिरक धार तीन बह धीरे। 
दुई दुई योगिनि पिबय दुऊ दिश निज मुख एक सुधीरे।।
रत्नापाणि निज सेवक जानिए मानिए देवि निहोरा। 
मिथिलापतिक सतत करू मंगल धन धरु गोचर मोरा।।
( तत्रैव )

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

623 . श्री भैरवी - अयुत उदित रवि रुचिर देह छवि अरुण पाट पट भासे।


                                    ६२३
                               श्री भैरवी  
अयुत उदित रवि रुचिर देह छवि अरुण पाट पट भासे। 
रिपु शिर निकल माल उर शोभित दश दिश ज्योति विकासे।।
रुधिर लेपमय पीन पयोधर मुख अरविन्द समाने। 
शशिधर रत्न मुकुट शिर शोभित मृदुल हास परधाने।।
पुस्तक अभय अक्ष जपमाला वर कर चारि निधाने। 
निज जनि शंकरि असुर भयंकरी श्री भैरवी तुअ ध्याने।।
विषय विषम रस ह्रदय देवि पद भज तन धरत ने ज्ञाने।
भुवन भुवन तसु उदित सुकृति वसु से जन भव पर ध्याने।।
जगत जननि विनती कछु सुनिए रत्नपाणि भन दासे। 
श्रीमिथिलेसक ह्रदय वास करू पुरिय तासु सभ आसे।।
                                                                  ( तत्रैव )

बुधवार, 9 नवंबर 2016

622 . श्री भुवनेश्वरी - जय भुवनेसि भीति भय भंजनि भगवति भूषित देहा।


                                      ६२२ 
                             श्री भुवनेश्वरी 
जय भुवनेसि भीति भय भंजनि भगवति भूषित देहा। 
श्याम जलद अभिराम चिकुर चय लसत भाल शशि रेहा।।
उदय समय रवि बिम्ब अरुण छवि नयन तीनि तुअ भासे। 
सिरमय जड़ित किरीट विराजित मुख सुषमा मृदु हासे।।
वाम उपरकर लसय अभय वर नीच बीच कर धन्या। 
दहिन उपरकर अंकुस तसु अध पास भास गिरि कन्या।।
भूपर भवन वृत्तिदल षोडस ता बिच वसु दल कंजे। 
ताहि बिच ऊपर तुअ पद युग कमल ध्यान भय भंजे।।
तुअ तनु रचन वचन गोचर नहि थकित शम्भु जगदीशा। 
भगत मनोरथ वस तुअ तनु वचन वे आपित ईशा।।
रत्नपाणि भन सुनिय सुमन भय करुणा करू जगमाता। 
पुरिय मनोरथ श्रीमिथिलेशक तुअ यश भव निरमाता।।
                                                   ( तत्रैव )

शनिवार, 5 नवंबर 2016

621 . श्रीत्रिपुरसुन्दरी - जय शिशु भानु अयुत तेजोमयि श्रीत्रिपुरसुन्दरी देवी।


                                   ६२१
                           श्रीत्रिपुरसुन्दरी  
जय शिशु भानु अयुत तेजोमयि श्रीत्रिपुरसुन्दरी  देवी। 
तीनि भुवन धन्या तोहि सब कह जकर पुरन्दर सेवी।।
कति विधि अतिरत आरत युत तनु बाल कलाकार भाले। 
अरुण वसन विलसित तुअ भगवति देवि त्रिलोचन बाले।।
सम सर पास धनुष इषु - दण्डक सृणि शोभित कर चारी। 
श्रीयुत चक्र विराजित तुअ पद कमल भक्त भयहारी।।
आगम निगम विदित तुअ महिमा के कहि सक अवसेषी। 
तुअ भय जगत भगत भवकारिणि की मत करत विसेषि।।
रत्नपाणि तुअ चरण सरोरुह सभक करिअ अभिलाषे। 
मिथिलपतिक सतत करू मंगल की कहब गोचर लाषे।।
                                              ( तत्रैव )  

शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2016

620 . श्रीतारा - लम्ब उदर अति खर्व भीम तनु द्विप अजनि कटि देशा।


                                      ६२० 
                                   श्रीतारा
लम्ब उदर अति खर्व भीम तनु द्विप अजनि कटि देशा। 
अस्ति चारि षट ता बिच खप्पर बाल भयानक केशा।।
एक चरण अपर चरण लस से सित पंकज वासी। 
अति मृदुहास भास नव यौवन लखि रूचि सम भासी।।
दक्षिण बाहु दुइ षङग कत्तृ लस रिपु शिर उत्पल वामे। 
भुवि अक्षोभ्य भाल पर शोभित लहलह रसन सुकामे।।
प्रात समय रवि बिम्ब त्रिलोचन दन्तुर दन्त विकासे। 
ज्वलित चिता चौदिश धहधह करू ततय देवि तुअ वासे।।
पिंडल जटाजूट शिर शोभित वेदबाहु अति भीमा। 
अनुपम चरित चकित सुर नर मुनि के कहि सक तुअ सीमा। 
रत्नपाणि भन तुअ पद सेवक तारणि सुनु अवसेषे। 
श्रीमिथिलेशक सतत करिअ शुभ ताहि न करिअ विसेशे।।
( तत्रैव )

गुरुवार, 27 अक्टूबर 2016

619 . श्रीकालिका - जय जगजननि ज्योति तुअ जगभरि , दक्षिण पद युत नामे।


                                      ६१९ 
                               श्रीकालिका 
जय जगजननि ज्योति तुअ जगभरि , दक्षिण पद युत नामे। 
अति धुति पीन पयोधर उन्नत सजल जलद अभिरामे।।
विकट दशन अति वदन भयानक फूजल मंजुल केशा। 
शोणित भय रसना अति लहलह श्रीकवयस्त्रिक देशा।।
तीन नयन अति भीम राव तुअ अस दुइ कुण्डल काने। 
शवकर काटि सघन पाती कय चौदिश करि परिधाने।।
मुण्डलमाल उर चारि भुजा तुअ खड्ग मुण्ड दुहु वामे। 
दक्षिण कर वर अभय विराजित गगन वसन बसु जामे।।
शिव शव रूप दरश तुअ पदयुग सदा वास शमशाने। 
फेरव रवकर चौदिश शोभित योगिनि गण परिधाने।।
रत्नपाणि भन अपरूप तुअ गति के लखि सक जगमाता।।
मिथिलापतिक मनोरथ दायिनि सचकित हरिहर धाता।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) रत्नपाणि  

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2016

618 . जै जै कमला विमल तुअ वारि। विधु भगिनी जे उदधि कुमारि।।


                                      ६१८
                                   कमला  
जै जै कमला विमल तुअ वारि। विधु भगिनी जे उदधि कुमारि।।
फोड़ि पहाड़ धार वह नीर। दरस परस जल हर सभ पीर।।
ताल सरोवर खण्डन कारी।  ----------------------------
( तत्रैव )

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2016

617 . श्री दुर्गा - जै जै दुर्गा दुर्ग प्रताप। तुअ भुजबल डर दानव काप।।


                                       ६१७
                                   श्री दुर्गा  
जै जै दुर्गा दुर्ग प्रताप। तुअ भुजबल डर दानव काप।।
सिंह चढ़लि कर लेल कृपाण। कोपि चलल रण रूप भयान।।
दानव दल दलि कैल ओरान। पिउल रुधिर नहि भेल अघान।।
रसन पसार दसन विकराल। ऐसन अरिदल कैल हत काल।।
चण्ड मुण्ड रन खण्डल डारी। शुम्भ - निशुम्भ जुगल रण मारी।।
महिष असुर रण कैल प्रकोप। ताहि निपाति कएल आलोप।।
असुर निपाति सुरहि सुख देल। तुअ रणविजय विदित जग भेल।।
कान्हाराम भन गोचर बानी। सदा सभा शुभ करिय भवानी।।
( गौरी स्वयंवर नाटिका )   कान्हाराम

बुधवार, 19 अक्टूबर 2016

616 . भारती - जय जय भारति भगवति देवि। छने मुदित रहु तुअ पद सेवि।।


                                      ६१६
                                    भारती  
जय जय भारति भगवति देवि। छने मुदित रहु तुअ पद सेवि।।
चन्द्र धवल रूचि देह विकास।श्वेत कमल पर करहु निवास।।
विणारव रसिता वर नारि। सदत मगन गिरिराज कुमारि।।
जन्म मरण नहि तोहि भवानि। त्रिदश दास तब त्रिगुणा जानि।।
अरुण अधर बंधूक समान। तीनि नयन विद्या वरदान।।
गोकुल असुत सविनय मान। देहु परम पद दायक जान।।
( तत्रैव ) गोकुलानन्द   

मंगलवार, 18 अक्टूबर 2016

615 .दुर्गा - जय जय दुर्गे जगत जननी। दुर कर भव भए होह दहिनी।।


                                         ६१५
                                         दुर्गा
जय जय दुर्गे जगत जननी। दुर कर भव भए होह दहिनी।।
खने नील खने सित निरमान। खन कुंकुम पंगक तनु अनुमान।।
राका विधुमुख नवविधु मराल। रक्त नयन सोभ केश कराल।।
लोहित रदन लोहित कर पान। भुकुटि कुटिल पुनि मोन धेआन।।
श्रुति भजें दस भूजें हर दुःख मोर। ऋषीहि पुरान गनल भुज तोर।।
करे वर अभय खड्ग जपमाल। मुकुर शूलधनु खेटक विशाल।।
न जानिअ आगमे तुअ कत रूप। तेतिस कोटि देव तोहि निरूप।।
पुनि पुनि होइहो देवि गोचर लैह। नाग पास बन्धन मोक्ष दैह।।
आनन्दे देवाबन्द नति गाव। हरि चढ़ि रिपु हनि पुरह भाव।।
( हिस्ट्री ऑफ़ मैथिलि लिटरेचर ) देवानन्द  

सोमवार, 17 अक्टूबर 2016

614 . गौरी - जय हरिगमनी जय हरिगमनी देधु अभयवर हर रमनी।


                                      ६१४
                                      गौरी 
जय हरिगमनी जय हरिगमनी देधु अभयवर हर रमनी। 
अति विकराल कपाल भाल मृग शोभित कच तट झलक मनी। 
लम्बित कच तर छपित छपाकर भुज पर भूषण भुजंग फनी।  
खप्पर वर करबाल ललित कर शुम्भ निशुम्भ दम्भवनी। 
रिपु भट विकट निकट झटपट कय धय पटकल चटपट अवनी। 
कुपित वदन पर नयन विराजित अरुण अरुण युग कमल सनी। 
लह लह रसन दसन दाड़िमबिज निज गण जनमल दुःख समनी। 
सुर नर मुनि हरखित सब सुनि हरि हर घर के तोहर सनी। 
रक्तबीज महिषासुर हारल असुर संहारल समर धनी। 
हमर कुमति तुअ पद पय गति बिसरिय जनु मोहि एको छनी। 
जगत जननि पद पंकज मधुकर सरस सुकवि यह लाल भनी। 
( गौरी स्वयंवर ) लालकवि 

रविवार, 16 अक्टूबर 2016

613 . जय देवी गौरि - मृगेंद्र गामिनि।रुचिर तनु रूचि विजित दामिनि।।


                                    ६१३
जय देवी गौरि - मृगेंद्र गामिनि।रुचिर तनु रूचि विजित दामिनि।।
दुरित खंडिअ दिवस यामिनि। शम्भूकामिनि हे।।
कइए तुअ पदकमल सेवा। निज मनोरथ सकल लेबा।।
सेबि दुरगत रहल केबा। मनुज देबा हे।।
गन्ध अक्षत कुसुम पानी। हमें निवेदिअ जत भवानी।।
लिअ सकल परिवार आनी। भगति जानी हे। 
सदय लोचने मोहि निहारिअ। तोरित आपद सवे विदारिअ।।
अपन किंकर गनि विचारिअ। रिपु संचारिअ हे।।
बिसरि मने अपराध अछि जत। भइए परसनि पुरिय अभिमत।।
भन रमापति कए प्रणति सत। चरन अनुगत हे।।
( तत्रैव )

  

शनिवार, 15 अक्टूबर 2016

612 .प्रनमों भगवति पद अरविन्द। मानस हमर करिअ सानन्द।।


                                     ६१२
प्रनमों भगवति पद अरविन्द। मानस हमर करिअ सानन्द।।
जइओ सतत तुअ भगति विहीन। तइओ न उचित रहिअ हम दिन।।
जयों कर तनय सहस अपराध। न कर जननि परिपालन बाघ।।
जदि तेजिअ मोहि पर - सुत जानि। जग जननी - पद तएह हानि।।
अञ्जलि बाँधि निवेदिअ तोहि। हर गेहिनि परसनि रहु मोहि।।
तुअ पद प्रणत रमापति भान। पतक हरिअ करिअ वरदान।।
( तत्रैव )

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2016

611 . त्रिपुरेश्वरी - जय जय त्रिभुवनतारिणि देवी। सब अभिमत पुर तुअ पद सेवि।।


                                       ६११
                                  त्रिपुरेश्वरी 
जय जय त्रिभुवनतारिणि देवी। सब अभिमत पुर तुअ पद सेवि।।
जुटक बाँध जटा धरु एक। तीनि नयन लोहित अतिरेक।। 
सिर सोभे अनुपम पञ्च कपाल। ससधर तिलक विराजित भाल।।
विकट दसन अति - रसन अधीर। फणिमय भूषण खरब सरीर।।
खरग काँति धरु दहिना हाथ। वामा इन्दीबर नर माथ।।
नव यौवन उर पर मुण्डमाल। लम्बोदरि पहिरन बघछाल।।
चौंदिस सतत फेरु कर सोर। चितिचय बास हास अतिघोर।।
प्रनत रमापति कह जग जोहि। सब - बहिनि दाहिनि रहु मोहि।।
( रुक्मिणी - परिणय नाटक ) रमापति 

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2016

610 . श्रीछिन्नमस्ता - जय जय जय प्रचण्ड चण्डिके आदि शक्ति तुअ काली।


                                      ६१० 
                             श्रीछिन्नमस्ता 
जय जय जय प्रचण्ड चण्डिके आदि शक्ति तुअ काली।
ब्रह्म विष्णु शिव सकल भुवन भरि तुअ सिरजल ब्रह्माणी।।
अष्टदल कमल उपर रविमण्डल तापर त्रिगुण सुरेखी। 
तापर रति विचरित मनमध कर तापर पद तुअ पेखी।।
लहलह रसन दसन अति चञ्चल विकट वदन विकराला। 
पीन पयोधर ऊपर राजित उरग हार मुण्डमाला।।
उत्तम अंग बह वाम पाणिकै दहिन कल्प धरि कांती। 
निज गल उछिल लिधुर मधुरिम छुबि जीविअ भलभाँती।।
योगिन युगल पास दुइ पोसल अरुण तरुण घनश्यामा। 
तीनि नयन तुअ जोति जगत भरि सहस्र भानु अभिरामा।।
भाव भक्ति वर दिअ परमेश्वरि भुक्ति मुक्ति वरदाने। 
हिमगिरि कुमरि चरण ह्रदय धरि सुमति उमापति भाने।।
( मैथिल भक्त प्रकाश )  

बुधवार, 12 अक्टूबर 2016

609 . जय जय मधुकैटभ अर्दिनी ! जय जय महिषासुर मर्दिनी।।


                                         ६०९ 
जय जय मधुकैटभ अर्दिनी ! जय जय महिषासुर मर्दिनी।।
घूसरनयन भस्म मण्डिनी ! चण्ड मुण्ड शिर खण्डिनी।।
रक्तबीजासुर संहारिणि ! शुम्भ निशुम्भ ह्रदय - दारिणि।।
सभ सुर शक्ति रूप धारिणि। सेवक सबहुक उपकारिणि।।
अनुपम रूप सिंहवाहिनि। सबहिं समय रहिहह दाहिनि।।
सुमित उमापति आशिष वाली। सकल सभा जय करथु भवानी।।
( पारिजातहरण नाटक ) उमापति    

शनिवार, 8 अक्टूबर 2016

608 . श्रीराधा


                                     ६०८ 
                                 श्रीराधा 
जयति जय वृषभानु नन्दिनी श्याममोहिनि राधिके। 
कनक शतवान कान्त कलेवर किरण जित कमलाधिके।।
सहज भंगिनि बिजुरि कत जिनि काम कत शत मोहिते। 
ज़ेहनी फणि  बन वेणि लम्बित कबरि मालति शोभिते।।
अंजन यंजन नयन रंजन वदन कत इन्दु नन्दिते। 
मन्द आज हांसि कुन्द परकासि बिजुरि कत शत झलकिते।।
रतन मन्दिर माँझ सुन्दरि वसन आध मुख झाँपियो। 
दास गोबिन्ददास प्रेम सागर सैह चरण समाधियो।।
( गोविन्द गीतांजलि )  गोबिन्ददास

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2016

607 . चञ्चल मन सुमिरह वैदेही !


                                     ६०७
चञ्चल मन सुमिरह वैदेही ! 
सबे परिहरि सिय चरन सरन जेहि आवागमन होए नहि तेही। 
कोटि कोटि ब्रह्माण्ड के रानी तासें मुगुध नेह करि लेही। 
शिव सनकादि आदि ब्रह्मादिक चरन सरन रज चाहत जेही। 
साहेब भजहु भरम तेजि द्रिढ भे आखिर भसम होइहैं देही।।
( तत्रैव )

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2016

606 . श्रीसीता


                                      ६०६ 
                                  श्रीसीता 
जनकलली महिमा गुन भारी !
चिन्तित कमल चरण ब्रह्मादिक परिहरि ह्रदय पदारथ चारी।।
शुक सनकादि चरण रज चाहत ध्यान धरत मुनि कानन झारी।।
शेष गनेस निगम गुन गावत भजत समाधि लाए त्रिपुरारी।।
जीवन जन्म सुफल तोहि साहेब जे जन जगत भगति अधिकारी।।
( साहेबरामदास गीतावली ) साहेबरामदास 

बुधवार, 5 अक्टूबर 2016

605 . प्रणमयों प्रणत कल्पतरू रूप। देख मुनि बालहिं अलष सरूप।।


                                  ६०५ 
प्रणमयों प्रणत कल्पतरू रूप। देख मुनि बालहिं अलष सरूप।।
आशा सरित संतारण सेतु। सुख सारथ पुरुषारथ हेतु।।
मांगओ माए माहेश्वरि एह। अभिनव अभिनव यश मह देह। 
हर वरतनु अनुचर भन राम। पुरिअ सुन्दर नरपति काम।।
( आनन्दविजय नाटिका ) रामदास 

मंगलवार, 4 अक्टूबर 2016

604 . कालिका


                                     ६०४ 
                                   कालिका 
जै कालिका स्वर्गधारिनि मत्त गजवर गामिनी। 
चिकुर चामर चन्दन तिलक चान सुमांगनी।।
कनक कुण्डल गंड मण्डित संग नाच पिशाचनी। 
भौह भ्रमर कमान साजिल दसन जगमग दामिनी। 
अधर लाल विशाल लोचन शोक मोचनि शूलिनी। 
विकट आनन् अति भयावनि हाथ खप्पर धारिनी।।
योगिनी गण यूथ खलखल नाच - नाच पिशाचनी। 
श्याम तनु अभिराम सुन्दर बाज रुनझुनु किंकिनी।।
जंध केदलि अंग कुन्तल पाद पदम विभूषणी। 
करजोरि जैकृष्ण करत गोचर शम्भुवाहिनि दाहिनी। 
हरषि हेरिअ तोहि शंकरि त्वरित दुःख निवारिणी।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) जयकृष्ण 

सोमवार, 3 अक्टूबर 2016

603 .भगवती गीत


                                   ६०३ 
                             भगवती गीत 
नील वरनी शम्भु घरनी छिरिक छवि जनु दामिनी। 
पाय नुपुर रजत किंकिणि सुनत सुर नर मोहिनी।।
कठिन खरगहिं लिये दुर्गे स्रवन झलकत टंकनी। 
अरुण नैना हसत वैना संग कोटिस योगिनी।।
चन्द्र भाल भुजंग भूषित करहु असुर निखंडिनी। 
विन्ध्यवासिनि होउ दाहिनि सुनहु हे भव पारनी।।
भूप से द्विपनाथ सुत देवनाथ सहित निवासनी।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) देवनाथ 

रविवार, 2 अक्टूबर 2016

602 . भगवती गीत


                                    ६०२ 
                            भगवती गीत 
जागहु हे जगदम्ब जननि मोरि , हरिए सकल दुख सारे। 
तुअ दरशन बिनु नैन विकल भेल , कखन देखब देवि तारे।।
हम अबला अवलम्ब दोसर नहि , केवल तोहर भरोसे। 
तोहें जगतारिणि  देहु एहो वर , सेवक करहु परोसे।।
हमर विकल मन धान दसो दिसि , की गति होएत मोरे। 
अशरण शरण धयल हम तुअ पद , तोहरे चरण गति मोरे।।
तोहें जगतारिणि  शत्रु संहारिणि , सेवक होउ ने सहाये। 
हरषि हेरिय देवि सुदिष्ट नयन , भरि संकट करिय तराने। 
होउ प्रसन्न देवि पुरहु सकल मन , दीअ अभय वरदाने।।
( मैथिल भक्त प्रकाश )

शनिवार, 1 अक्टूबर 2016

601 . गोसाउनि


                                        ६०१ 
                                   गोसाउनि 
जै जै जै भवसागर तारिणि तीनि भुवन तुहि माता। 
असुर मारि सुरपाल कारिणी भक्त अभयवर दाता।।
काल रूप तुहि काली उतपन सोनित करिय अधारे। 
सगर मेदिनि भरि रुधिर पसारल कैलहुं असुर संघारे।।
लोहित रसन दसन आउर बह लिधुर भुअंगम काया। 
सिंह चढ़लि रण फ़िरथि गोसाउनि करि देवन पर दाया।।
रामनाथ भन सुनिये गोसाउनि मोरा गति नहि आने। 
जन्म जन्म तुअ चरण अराधिअ करिये मनोरथ दाने।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) रामनाथ 

गुरुवार, 29 सितंबर 2016

600 . भगवती


                                      ६०० 
                                  भगवती 
जय जय भगवती जय जगदम्बे। तव पद मोर परम हित लम्बे।।
करतलकृत करवाल विशाले। नव शशि भूषित सुललित भाले।।
समर समित रिपु निकर कराले। चण्ड मुण्ड खण्डन जयमाले।।
भुजगविभूषित लोहित वसने। विकट दशन लम्बित वर रसने।।
सजल जलद इव पूरित तारे। वहसि कलित शत मणिमय हारे।।
सुकवि गणक इह गायति गीत। तब चरणे मानसमुपनीत।।
( श्रीकृष्ण जन्म रहस्य ) श्रीकान्तगणक 

बुधवार, 28 सितंबर 2016

599 . श्रीदुर्गा


                                      ५९९ 
                                   श्रीदुर्गा 
धरणिधर - वर शिखर - चारिणि दृप्त दानव - दल - विदारिणि ,
विधि विभावसु - वरुण - वासव - वंदितं ललिते। 
शर - शरासन - पाश - धारिणि सतत - संकुल - समर - कारिणि ,
मातरंगकुश - दलित - दुरित - प्रणत - परिकलितं।।
जय देवी दुर्गे दुर्गवासिनि सादर - स्मित - सुभग - हासिनि ,
भाल - बाल - मारल - निर्म्मल - चारु - चन्द्रकलं। 
सुधासार - सरो - विहारिणि चन्द्रिका - चयचारु - हारिणि ,
श्रवण मण्डल - लोल - कुण्डल - शोभि गण्ड - तले।।
असित- पंकज - गर्व - गञ्जन नील - लोहित - ह्रदय - रञजन ,
खञ्जन - दुति - चार - चञ्चल - लोचनपत्रितयं। 
मणि - मयूखावलि - विराजित कनक - नूपुर - राव - राजित ,
चरण - निर्जित -मधुप - रूप - युत - सरसिज - द्वितयं।।
कृत - भवानी - चरण - वन्दन सुकवि पण्डित - राजनन्दन ,
शंकरार्पित - गीत - तोषित - मानसे वरदं। 
पालया विनपाल - नायक - रूप - निर्ज्जित - पञ्चसायक ,
मानसिंह महीशमीश प्रणति परिचय दे।!
( मैथिल प्राचीन गीतावली )  

मंगलवार, 27 सितंबर 2016

598 . गोसाउनि


                                        ५९८ 
                                    गोसाउनि 
जय जय निर्गुण - सगुण तनु धारिणि ! गगण - विहारिणि मा हे। 
कत - कत विधि हरिहर सुरपति गण सिरजि तोहें खाहे।।
निगुण कहव कत सगुण सुनिअ जत ततमत कए रहु वेदे। 
थाकि थाकि बैसल छथि झखइत , नहि पाबथि परिछेदे।।
तोहरहि सं सभ तन , तोहरहि सं तन्त्र मन्त्र कत लाखे। 
केओ नारि तन , केओ पुरुष तन अपन अपन कए भाखे।।
सुदृढ़ भक्ति रसवश तुअ अनुपम ई बूझिअ परमाने। 
भुक्ति मुक्ति वर दिअऔ गोसांउनि ! कवि वागीश्वर भाने। 
( मैथिल भक्त प्रकाश ) बागीश्वर 

सोमवार, 26 सितंबर 2016

597 .श्रीशंकरि


                                     ५९७ 
                                 श्रीशंकरि 
जय जय शंकरि। सहज शुभंकरि। समर भयंकरि श्यामा।
बाउरि वेश केश शिर फूजल शववाहिनि हर वामा।।
वसन विहीन छीन छवि लहलह रसन दशन विकराला। 
कटि किंकणि शव - कुण्डल मण्डित उर पर मुण्डक माला।
श्रुक बह लिधुर धार धरणी धर धरणीधर सम बाढ़ी। 
खलखल हास पास दुइ जोगिनि वाम दहिन भए ठाढ़ी।।
कट कट कए कत असुर संहारल काटि काटि कैल ढ़ेरी। 
घट घट लिधुर धार कत पिउलि मगमातलि फेरि फेरि।।
विकट स्वरुप काल देखि कांपथि की पुनि असुर बेचारे। 
तुअ पद प्रेम नम जेहि अन्तर ताहि अमिअ रस सारे।।
जीवदत्त भन शिव सनकादिक सभक शरण एक तोही। 
निर अवलम्ब जानि करुणामयि ! करिअ कृतारथ मोही।।
( मैथिलि गीत रत्नावली ) जीवदत्त    

596 .कलश स्थापना विधि / नवरात्रि पूजन विधि


                                     ५९६ 
कलश स्थापना विधि / नवरात्रि पूजन विधि 
 घट स्थापना शुभ मुहूर्त  : 01 अक्टूबर 2016 सुबह 06:32 से 07:39 के बीच 
 सुबह 09:30 से 11:00 बजे तक राहुकाल को पूरी तरह टालना है। 
नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।  प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।
कलश / घट स्थापना विधि :

देवी पुराण के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश / घट की स्थापना की जाती है। घट स्थापना करना अर्थात नवरात्रि की कालावधि में ब्रह्मांड में कार्यरत शक्ति तत्त्व का घट में आवाहन कर उसे कार्यरत करना । कार्यरत शक्ति तत्त्व के कारण वास्तु में विद्यमान कष्टदायक तरंगें समूल नष्ट हो जाती हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।
सामग्री:
जौ बोने के लिए 
जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी 
घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश (“हैमो वा राजतस्ताम्रो मृण्मयो वापि ह्यव्रणः” अर्थात 'कलश' सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का छेद रहित और सुदृढ़ उत्तम माना गया है । वह मङ्गलकार्योंमें मङ्गलकारी होता है )
कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल 
मोली (Sacred Thread)
इत्र 
साबुत सुपारी पाँच 
पान के पाँच पत्ते 
दूर्वा
कलश में रखने के लिए पाँच  सिक्के 
पंचरत्न 
अशोक या आम के 5 पत्ते वाली डंठल  
कलश ढकने के लिए ढक्कन 
ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल 
पान के पाँच पत्ते 
पानी वाला नारियल 
नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपड़ा 
कलश को लपेटने के लिए लाल कपड़ा 
फूल माला 

विधि 
 मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब फिर एक परत जौ की बिछाएं। जौ के बीच चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। उसमे इतना ही पानी डालें की मिटटी / रेत  भींग जाये ! अब कलश को लाल कपड़े से लपेट कर  कंठ पर मोली बाँध दें। अब कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में साबुत पाँच  सुपारी, दूर्वा, फूल डालें। कलश में थोडा सा इत्र दाल दें। यदि संभव हो तो  कलश में पंचरत्न डालें। कलश में पाँच  सिक्के रख दें। कलश में  आम के पांच पत्ते वाले डंठल  रख दें। अब कलश के  मुख पर  ढक्कन रख  दें। ढक्कन में चावल भर दें। उसपर पान के पांच पत्ते ऐसे रखें की उसका डंठल साधक की ओर रहे ! श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार “पञ्चपल्लवसंयुक्तं वेदमन्त्रैः सुसंस्कृतम्। सुतीर्थजलसम्पूर्णं हेमरत्नैः समन्वितम्॥” अर्थात कलश पंचपल्लवयुक्त, वैदिक मन्त्रों से भली भाँति संस्कृत, उत्तम तीर्थ के जल से पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्न मई होना चाहिए। 
अब कलश में थोड़ा और जल-गंगाजल डालते हुए 'ॐ वरुणाय नमः' मंत्र पढ़ें और कलश को पूर्ण रूप से भर दें। इसके बाद आम की टहनी (पल्लव) डालें। यदि आम का पल्लव न हो, तो पीपल, बरगद, गूलर अथवा पाकर का पल्लव भी कलश के ऊपर रखने का विधान है। जौ या कच्चा चावल कटोरे में भरकर कलश के ऊपर रखें। 
फिर लाल कपड़े से लिपटा हुआ कच्‍चा नारियल कलश पर रख कलश को माथे के समीप लाएं और वरुण देवता को प्रणाम करते हुए रेत पर कलश स्थापित करें। कलश स्थापना के बाद मां भगवती की अखंड ज्योति जलाई जाती है। यह ज्योति पूरे नौ दिनों तक जलती रहनी चाहिए। फिर क्रमशः श्री गणेशजी की पूजा, फिर वरुण देव, विष्णुजी की पूजा करें। शिव, सूर्य, चंद्रादि नवग्रह की पूजा भी करें।
इसके बाद पुष्प लेकर मन में ही संकल्प लें कि मां मैं आज नवरात्र की प्रतिपदा से आपकी आराधना अमुक कार्य के लिए कर रहा / रही हूं, मेरी पूजा स्वीकार करके इष्ट कार्य को सिद्ध करो। पूजा के समय यदि आप को कोई भी मंत्र नहीं आता हो, तो केवल दुर्गा सप्तशती में दिए गए नवार्ण मंत्र ' ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ' से सभी पूजन सामग्री चढ़ाएं। मां शक्ति का यह मंत्र अमोघ है। आपके पास जो भी यथा संभव सामग्री हो, उसी से आराधना करें। संभव हो शृंगार का सामान और नारियल-चुन्नी जरूर चढ़ाएं।
सर्वप्रथम मां का ध्यान, आवाहन, आसन, अर्घ्य, स्नान, उपवस्त्र, वस्त्र, शृंगार का सामान, सिंदूर, हल्दी, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, मिष्ठान, कोई भी ऋतुफल, नारियल आदि जो भी सुलभ हो उसे अर्पित करें। पूजन के पश्चात् श्रद्धापूर्वक सपरिवार आरती करें और अंत में क्षमा प्रार्थना भी करें।
ध्यान रखें: कलश सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का होना चाहिए। लोहे या स्टील का कलश पूजा में प्रयोग नहीं करना चाहिए।
नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है: “अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै। प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”। अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है।नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।
 अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो बीच रख दें। अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। "हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इस में पधारें।" अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को इत्र समर्पित करें। 
कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है।
नवरात्री के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं और रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए। मूर्ति के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यन्त्र को स्थापित करें। माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें "हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये।" उसके बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए। उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। फल, मिठाई अर्पित करें।

नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है। यदि दुर्गा सप्तशती का तेरह अध्याय पाठ नित्य संभव न हो तो इस क्रम में पाठ करें - प्रथम दिन एक , दूसरे दिन दो , तीसरे दिन एक , चौथे दिन चार , पांचवें दिन दो , छठे दिन एक और सातवें दिन दो अध्यायों के क्रम में पाठ पूरा कर लें !  हर एक मनोकामना पूरी हो जाती है। सभी कष्टों से छुटकारा दिलाता है।
नवरात्री के प्रथम दिन ही अखंड ज्योत जलाई जाती है जो नौ दिन तक जलती रहती है। दीपक के नीचे "चावल" रखने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा "सप्तधान्य" रखने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है
माता की पूजा "लाल रंग के कम्बल" के आसन पर बैठकर करना उत्तम माना गया है
नवरात्रि के प्रतिदिन माता रानी को फूलों का हार चढ़ाना चाहिए। प्रतिदिन घी का दीपक (माता के पूजन हेतु सोने, चाँदी, कांसे के दीपक का उपयोग उत्तम होता है) जलाकर माँ भगवती को मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए। मान भगवती को इत्र / अत्तर विशेष प्रिय है।
नवरात्री के प्रतिदिन कंडे की धूनी जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा जरूर अर्पित करना चाहिए।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए नवरात्र मैं पान मैं गुलाब की ७ पंखुरियां रखें तथा मां भगवती को अर्पित कर दें
मां दुर्गा को प्रतिदिन विशेष भोग लगाया जाता है।
प्रतिदिन कन्याओं का विशेष पूजन किया जाता है। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार “एकैकां पूजयेत् कन्यामेकवृद्ध्या तथैव च। द्विगुणं त्रिगुणं वापि प्रत्येकं नवकन्तु वा॥” अर्थात नित्य ही एक कुमारी का पूजन करे अथवा प्रतिदिन एक-एक-कुमारी की संख्या के वृद्धिक्रम से पूजन करें अथवा प्रतिदिन दुगुने-तिगुने के वृद्धिक्रम से और या तो प्रत्येक दिन नौ कुमारी कन्याओं का पूजन करें। 
यदि कोई व्यक्ति नवरात्र पर्यन्त प्रतिदिन पूजा करने में असमर्थ है तो उसे अष्टमी तिथि को विशेष रूप अवश्य पूजा करनी चाहिए।  प्राचीन काल में दक्ष के यज्ञ का विध्वंश करने वाली महाभयानक भगवती भद्रकाली करोङों योगिनियों सहित अष्टमी तिथि को ही प्रकट हुई थीं।
प्रतिदिन कुछ मन्त्रों का पाठ भी करना चाहिए।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।

ऊँ जयन्ती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी ।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः           
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

रविवार, 25 सितंबर 2016

595 .श्रीश्यामा


                                     ५९५ 
                                 श्रीश्यामा 
जै जै जै महिषासुर मर्दिनि जगत विदित तुअ श्यामा। 
सुर मुनि आदि ध्यान नहि पाबथि अहर्निश जप तुअ नामा।।
विकसित वदन चिकुर चामर जनि चान तिलक शोभे माथा। 
मुण्डमाल बघछाल सम्हारिअ योगिनगण लिये साधा।।
अरिदारिणी सुर पालनि भगवति सिंह पीठ असवारा। 
विविध रूप जग दुरित निवारिणि कारिनि असुर संहारा।।
तीनि भुवन अनुपालिनि भगवति कमलनैन लखु ग्याने। 
छेमिअ छेमिअ शंकर अवगुण देहु चरण उर ध्याने।।
                                                                ( मैथिल भक्त प्रकाश )